विचार

बुधवार, 3 दिसंबर 2008

मीडिया की कारगुजारी

मीडिया की भारी गलतियों की वजह से (सीधा प्रसारण ) आतंकवादियो को रणनीति बनाने में आसानी हुई । क्या मीडिया की यही जिम्मेदारी है ? जिसके सीधे प्रसारण के कारन कई नागरिको और पर्यटकों को अपनी जान गंवानी पड़ी । सवाल यह है की मीडिया कब अपनी जिम्मेदारियों को समझेंगी ?

मंगलवार, 2 दिसंबर 2008

मानसिक दिवालिये पन के शिकार नेता (एक अपील अध्यक्ष जी के नाम)

यह माना जाता है की जब कोई सियार हुआ-हुआ करना शुरू करता है तो सारे सुरु कर देते हैं.मुंबई बम बिश्फोत के बाद जनता के बिरोध प्रदर्शनों के बाद ये आत्म्लुब्ध अकर्मण्य नेता तिलमिला गए हैं.और सारे के सारेएक ही सुर में बोलना शुरू कर दिए हैं।

कुछ नेता स्वयं को ही लोकतंत्र और प्रजातान्त्रिक संस्था समझाने लगे हैं.और अपने खिलाफ विरोध प्रदर्शन पर तिलमिला गए हैं।
नकवी ने कहा-कुछ संगठनो ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ने की जगह लोकतंत्र के खिलाफ जंग छेड़ दी है,इस तरह के प्रदर्शनों से वे लोकतंत्र के प्रति अविश्वास पैसा कर रहे है जम्मू कश्मीर में यही कम आतंकवादी कर रहे हैं.यह वक्त पाक प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होने का है,नाकि प्रजातान्त्रिक संस्थाओं के खिलाफ असंतोष पैदा करने का ,साथ ही कहा कुछ महिलाएं लिपस्टिक पाउडर लगाकर नेताओं के खिलाफ प्रदर्शन कर रही हैं,उनमे और कश्मीरी आतंकियों में कोई फर्क नही हैदोनो लोकतंत्र और उसमे शामिल लोगो के खिलाफ हैं।

राय- दुखी और पीडितो के दुःख को नकवी नही देख पाए लेकिन लिपस्टिक देखा ,यह बताता है नकवी की निगाह कहा रहती है और औरतो के प्रति कितना सम्मान इनमे है,क्या महिला आयोग कोई एक्शन लेगा...इन्हे आतंकी कहना, इनके मानसिक दिवालियेपन को ही दिखाता है,और मानसिक दिवालिये नेता हमारे सांसद विधायक होने की योग्यता नही रखते यह संविधान में लिखा है....चुनाव आयोग को इसकी जांचकर इनको अयोग्य ठहराना चाहिए...

माकपा के वी एस अच्च्युतानान्दन ने कहा-अगर वो संदीप (मुंबई में शहीद मेजर )का घर न होता तो वह कुत्ता भी झांकने न जाता.(संदीप के पिता द्वारा मिलाने से इनकार कराने पर )
राय-क्या इनसे कोई पूछने वाला है की आप मुख्यमंत्री न होते तो क्या होते....ऐसे गैर जिम्मेदाराना बयां बताते है की यह पड़संभालने लायक यह नही बचे....ये इस्तीफा दे.कितने संवेदनशील है यह भी बताता है.साथ ही संसद या विधानसभा का सदस्य होने की योग्यता इनमे है की नही आयोग जांच करे॥
राकपा नेता का बयान-प्रफुल्ल पटेल कहते हैं -आतंकी घटना के लिए केवल राजनितिक दल या नेता जिम्मेदार नही है,सुरक्षा अधिकारी भी दोषी हैं इसके अलावा आम जनता की भी जिम्मेदारी बनती है की वह सतर्कता बरते....
राय-जब अधिकारियों को संभाल नही पा रहे हो तो आतंकियों को क्या संभालोगे इस्तीफा दो...फ़िर सुरक्षा गार्डों के साए में क्यों टहलते हैं...आज तक आतंकी हमले में कितने नेता मरे कितने आम आदमी हिसाब दो.अभी ब्लॉग लिखे जाने तक किसके ऊपर आए किसे पता॥
नीतिश ने कहा-हमारे ख़िलाफ़ ऐसे प्रदर्शन अनुचित है..इससे लोकतंत्र पर असर पङता है ये तरिका अनुचित है॥हम जनता के प्रतिनिधि हैन्हामे इनके दर्द का अहसास है...
राय-दर्द का एहसास होता तो तो छोटे से विरोध पर इतना बुरा ना लगता वो भी तब जब हर बार शिकार आम आदमी ही होता है..उसमे असुरक्षा की भावना है..और वह शिकार है....
क्या आप बेशर्म नही है?क्या अमेरिक में नेता नही है?क्या वहा दोबारा आतंकी हमला हुआ.


शनिवार, 4 अक्तूबर 2008

.........काश उजाला दिल में आए

विजयादशमी का महत्त्वपूर्ण पर्व आने वाला है.जिसका सभी भारतीय जनमानस खासकर हिंदू और बाज़ार बेसब्री से इंतजार करता है.विजयादशमी सच और न्याय का असत्य और अन्याय पर विजय का त्यौहार है,जिसके बाद खुशियों की बरसात दीपावली के रूप में आती है.
इस बार लगता है आसुरी अर्थात आतंकवादी शक्तियां उत्साह में है जो लगातार धमाके कर अशांति फैला रही हैं.इस पर्व पर हम कामना करते हैं की उनके अन्दर का असुर मर जाए और वे शान्ति का रास्ता अखतिआर करें, भारत में खुशहाली आए .

गुरुवार, 11 सितंबर 2008

अजब दुनिया

ऐ दुनिया भी क्या खूब है..कब क्या हो जाय कहा नही जा सकता .गंजे लोग अपने बाल उगाने के लिए क्या-क्या जातां नही करते और कही न कहीं उन्हें सर पर बाल न होने का अफ़सोस होता था,लेकिन अब बाज़ी पलट गई है.न्यू जीलैंड की एक एयर लिनस कंपनी गंजो के सर पर अपना विज्ञापन देने जा रही है,जिसके उन्हें १००० डॉलर मिलेंगे ...मतलब शुद्ध मुनाफा न बालो को सवारने में कोई खर्च औरअब उसका व्यावसायिक उपयोग अब तो बल वालो को भी इनसे रश्क होगा क्योंकि महगाई बढती जा रही है.

बुधवार, 10 सितंबर 2008

कोसी के बहाने

बिहार प्रान्त में कोसी नदी में आई बाढ़ ने करीब ३५ लाख लोगो को प्रभावित किया है इस बाढ़ ने अरबों रूपये की संपत्ति को भी तहस नहस कर दिया है.सरकार सेना नागरिक और अन्य संगठन इससे निपटने की कोशिश कर रहे हैं.और व्यवस्था को पटरी पर लाने में लगे हैं ?किंतु इस बाढ़ ने हमारे सामने कुछ प्रश्न खड़े कर दिये हैं.जिनके जवाब ढूढना बेहद जरूरी है।

पहली ऐसी विपत्तियों के आ ही जाने के बाद इससे निपटने के लिए हम कितने तैयार हैं?क्योंकि बाढ़ के आने ने बाद लोग कई दिनों तक बाढ़ में फंसे रहे उन्हें बचाव और राहत सामग्री के लिए कई दिनों तक इंतजार करना पड़ा..और भोजन के पैकेट गिराए गए तो भीड़ के बीच जरूरत से कम पैकेट गिराए गए.जिससे छीना झपटी और आराजकता की घटनाएं घटी.अराजकता से निपटने की योजना हमारे पास है ?और ऐसी स्थिति में होने वाले अपराधों से निपटने में क्या हम सक्षम है? समाचारों में ऐसी खबरें भी आई हैं की जान बचाने के लिए नाविकों ने पर व्यक्ति हजारों रूपये चार्ज किए .क्या ऐसी स्थितियों में भी हम अपना स्वार्थ त्याग नही सकते लोलुपता की यह कैसी सामाजिक व्यवस्था है? ये घटनाएँ तब घाट रही हैं जब हमने आपदा प्रबंधन के लिए बाकायदा बोर्ड बना रखे हैं.
एक खामी यह दिखायी दी की नौकर शाही और अन्य संगठनो में समन्वय का अभाव है.ख़बर यह आई है की सेना को बचाव कार्य के लिए नौकरशाही से कई दिनों तक आदेश का इंतज़ार करना पडा.क्या कोई भी देश एक ही व्यक्ति और संगठन चला पायेगा?.और तब जब इसी देश में समन्वय की यह कल्पना की गई हो और उसकी शक्ति का बखान किया गया हो-


विकल व्यस्त विखरे पड़े हैं,शक्ति के विद्युत् कण निरूपाय

समन्वित करें जो इनको,विजयिनी मानवता हो जाय ।

- जयशंकर प्रसाद


पानी कम होने के बाद बिमारियों के फैलाने की भी खबरें आई थी.
एक दूसरा सवाल ऐसी आपदाओं को आने से रोकने से सम्बंधित है.कोशी के लिए गठित हाई लेवल कमिटी ने जब जून से पहले बाँध को रिपेयर कर लेने का आदेश दिया था तो इस पर काम क्यों नही हुआ इसका जवाब आना बाकी है.क्या हम इस तरह की दुर्घटना को रोकने का प्रयास कर रहे हैं.की मौत का नंगा नाच देखना हमारी आदत में शुमार हो गया है।

तीसरा सवाल द्र्घतना के बाद नेपाल के बयान से संबधित है.हमारी विदेशनीति किस ओर बढ़ रही है की हमारे पड़ोसी केवल हमें संदेह की दृष्टि से ही देख रहे हैं.प्रचंड पिछली संधियों की समीक्षा की बात कह रहे हैं और यह की भारत ने नेपाल से जो संधि की है वह तर्क सांगत नही है.क्या यह चीन का प्रभाव है और है तो क्यों?
एक सवाल यह भी की पर्वत पहाड़ नदी घाटी में अनावश्यक गतिविधिया बढ़ने का दंड प्रकृति ने तो नही दिया है और इसके बाद क्या? .शायद प्रकृति हमें सावधान भी कर रही थी की सावधान छेड़-छड़ न करो नही तो हम तुम्हे सबक भी सिखा सकते हैं. अंत में दुष्यंत कुमार की पंक्तियों से मैं अपनी बात समाप्त करूंगा।

बाढ़ की संभावनाएँ सामने हैं,

और नदियों के किनारे घर बने हैं ।

चीड़-वन में आँधियों की बात मत कर

,इन दरख्तों के बहुत नाज़ुक तने हैं ।

मंगलवार, 19 अगस्त 2008

खेल और भारत

लो ओलंपिक में भारत की एक और उम्मीद अखिल को मुह की खानी पड़ी.दोष टीम मैनेजमेंट की रणनीति को दिया जा रहा है.आख़िर कब तक रणनीति बनाने वालो की वजह से बड़े मंचो पर यह एक अरब से ज्यादा की आबादी वाला देश खाली हाथ या कुछ एक पदक लेकर लौटता रहेगा।
फ़िर भी यह ओलंपिक ख़ास रहा है क्योंकि अभिनव के व्यक्तिक प्रयास से पहली बार ओलंपिक में किसी व्यैक्तिक स्पर्धा में स्वर्ण जीतने का स्वाद हमें मिला.यह स्पर्धा हमारे लिए उम्मीद पैदा करने वाला रहा क्योंकि अखिल ,सा इना नेहवाल समेत अनेक खिलाड़ी नजदीकी मुकाबले हारे.जिससे आगे एक किरण दिखाई देती है।
अखिल ने जिस तरह विश्व चैम्पियन को हराया वह हमरे लिए गौरव की बात है.लेकिन इन खेलो के प्रशिक्षण में आने वाले खर्च को देखते हुए कहा जा सकता हैं बड़े मंचो पर पदक जीतना गरीबो के लिए मुश्किल होता जा रहा है,ये और बात है की रास्ते भले कठिन हो जीतना उनके लिए नामुमकिन नही है.लेकिन बदली परिस्थितियों में सरकार की तैयारी निराश करने वाली दिखाई पड़ती है।
राष्ट्रमंडल खेलो से पहले ,अगर सरकार चेत जाती है तो शायद हम बे-आबरू होने से बच सकते हैं । जबकि इसके लिए समय रेत की तरह हाथ से फिसलता जा रहा है.और अभी डेल्ही में इसके लिए जरूरी आधारभूत संरचना का भी विकास नही किया जा सका है,इसके बावजूद सरकार इस स्पर्धा को पर्यटन के ही लिहाज़ से देख रही है,खेल से नही.बिना नजरिया बदले पदक की उम्मीद बेमानी है।

मंगलवार, 15 जुलाई 2008

....एक अच्छी शुरूआत

२२ जुलाई को अयोध्या में संतो का एक महा सम्मलेन होने जा रहा है। जिसमें देश के प्रमुख संत देश में हिंदुत्व की अलख जगाने की रणनीति तैयार करेंगे। इस सम्मलेन का उद्देश्य; पिछले माह हरिद्वार में तय हुए विहिप की योजनाओं को अमली जामा पहुचाना है।जिसमें देश के प्रमुख संत देश के एक-एक जिलों को गोद लेंगे।
विहिप (संतो)द्वारा उठाया यह कदम सराहनीय है। संतो द्वारा एक-एक जिलो को गोद लेने से वहां अनेक सांस्कृतिक,धार्मिक ,एवं सामाजिक कार्यक्रम ,आयोजित,कराये जा सकते हैं। जिससे इन जिलों में आर्थिक विकास और सामाजिक विकास की नदी अर्थात् गंगा बह सकती है।लोगो की धार्मिक (आध्यात्मिक) रुचियों के परिष्कार में मदद मिलेगी।
हमारी धार्मिक संस्थावो के पास काफ़ी पैसा है ,उन्हें दान भी काफ़ी मिलता है,जिनका उद्देश्य सामाजिक,धार्मिक कार्य कराने के लिए ही दान किया जाता है ।यह धन का सबसे अच्छा उपयोग होगा ।इधर मंदिरों और आश्रमों से सम्बंधित लोगो के हत्या जैसा आरोप लगने और इनमें सघर्ष की ख़बरों ने इनकी प्रतिष्ठा को धक्का पहुचाया है।
इस(जिलों के गोद लेने के ) कार्य से हिंदू धर्म में जाति पंथ और विचारधारा के नाम से जो विखराव और टकराव हो रहा है,उसे रोकने में भी मदद मिलेगी। साथ ही समाज में नैतिकता भी बढेगी। अपराध को बढ़ने से भी रोका जा सकता है। आर्थिक विकास के कुछ कार्यक्रम इन्होने चलाया तो गरीबो और विकास से दूर इन जिलों की तस्वीर बदल सकती है।
हमारे धर्म में दरिद्रो में (प्राणी मातृ में)नारायण के दर्शन किया जाने की परम्परा है। दान का लक्ष्य नारायण की सेवा ही होती है।इस कार्य में आशा है उन्हें यथेष्ट महत्त्व मिलेगा।

बुधवार, 9 जुलाई 2008

कुछ औरों को भी दे- दो.

२७ जून को मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा नोटिफिकेशन जारी होने के बाद यमुनापार (इलाहाबाद) में देश का पहले ग्रामीण विश्वविद्यालय नेहरू ग्राम भारती विश्वविद्यालय के बनने का काम शुरू हो गया है। जिसकी आधारशिला पंडित जवाहर लाल नेहरू ने १९६२ में रखी थी। वैसे... पूर्वांचल की आबादी और आवश्यकता को देखते हुए इसकी सख्त जरूरत महसूस की जा रही थी।
इस विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद, इलाहाबाद में दो केन्द्रीय विश्वविद्यालय होंगे इसके साथ एक मुक्त विश्वविद्यालय, एक एनआईटी, एक आई आई आई टी एवं कई शोध संस्थान देश और प्रदेश की शिक्षा में योगदान दे रहे हैं। यह एक गौरवशाली समय है। लेकिन इसके साथ यह (पूर्वांचल) क्षेत्र गरीबी बेरोजगारी के मकड़जाल में फंसा हुआ है, जबकि (अन्य जिलें भी) खनिज मानव और प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है।
कुछ जिलों में तो पर्याप्त डिग्री कॉलेज, इंटर कॉलेज तथा प्राथमिक विद्यालय भी नही हैं। यहाँ आदिवासी और पिछड़ी जातियों की आबादी भी पर्याप्त है। इनकी बात छोड़ भी दी जाय तो सामान्य वर्ग की भी एक बड़ी जनसंख्या की आर्थिक स्थिति ऐसी नही है, कि बच्चे अपना घर छोड़ कर इलाहाबाद पढ़ने जा सके। इन जिलों की उच्च शिक्षा की रीढ़ पूर्वांचल विवि से २५६ महाविद्यालय सम्बद्ध हैं, जिससे सत्र में देरी होती है। कई बार इसकी वजह से इन महाविद्यालयों के छात्रों को अच्छे अवसर समय से अंकपत्र न मिलने के कारण छूट जाते हैं। इलाहबाद विवि (शहर से) बाहर के महाविद्यालयों को सम्बद्धता नहीं देता।
ऐसे में अच्छा होता यह विवि पूर्वांचल के किसी अन्य जिले में स्थापित किया जाता। अपेक्षाकृत विकसित इस जिले का इससे कुछ न बिगड़ता। जिससे इन पिछडे जिलों के गरीब छात्रों को अच्छी शिक्षा मिलती । साथ ही यहाँ का अकादमिक माहौल भी सुधरता (अच्छी शैक्षणिक गतिविधियों और विद्वानों के आगमन से)। विवि में नियुक्तियों से और तनख्वाह का कुछ हिस्सा तो कर्मचारी यहाँ खर्च ही करते, जिससे यहाँ की जर्जर अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में मदद मिलती। सब-कुछ समरथ को मिले, कमजोर ताकता रहे, यह कहाँ का न्याय है। इन नीतियों से विषमता बढती है घटती नहीं।

मंगलवार, 8 जुलाई 2008

चुनाव और बनती -बिगड़ती दोस्ती.

लोकसभा चुनाव आने वाला है.अब नए रिस्तो के बनने पुराने में खामियों के दिखने और टूटने का समय आ गया है.इसी क्रम में वाम पार्टिया कांग्रेस से बहुत नाराज हो गई है (४ सल् बाद).उसमे अब केवल खामिया इनको दिख रही है.क्योंकि वोट तो चाहिए ही।

वाम पार्टियाँ काग्रेस की असफलता पर एक आरोप पत्र लाना चाहती है .लेकिन यह आज से एक-दो-तीन चार सल् पहले क्यों नही कर सकी.तब तो मंहगाई और अन्य विरोध के लिए एक औपचारिकता की जाती थी.सरकार की बातचीत (पार्टी )के बाद सरकार का कदम ही ठीक.रहता था ?ये भूलते हैं की सरकार केवल इनके समर्थन से चल रही थी.सरकार की चाय पर जनता की तकलीफों को ये कुर्बान कर देते थे।

ये चाय -पानी पार्टियाँ चीन के किसी भी (सिक्किम और अरुणाचल पर उसके रूख )सरकार पर दबाव नही बनाती की सरकार कदा प्रतिरोध करे,बल्कि सरकार पर अप्रत्यक्ष दबाव ही उसके पक्ष में बनाती हैं। आज चुनाव आया है तो इन्हे देश हित और जनता,तथा मंहगाई याद आ रही है सवाल यह है की यह इन्हे पहले क्यों नही याद आया.क्योंकि मंहगाई लगातार बढ़ रही है.और करार पर सरकार लगभग दो साल से काम कर रही है.सरकार ४ साल से इनके समर्थन से चल रही है.

शनिवार, 5 जुलाई 2008

बातें कैम्पस की

माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल की प्रवेश परीक्षा के परिणाम आज घोषित कर दिया गया.जिससे बेहतर शिक्षण के द्वारा नए पत्रकार तराशे जाने का रास्ता साफ़ होगया है.प्रत्येक पाठ्यक्रम के लिए लगभग २५ सीटें निर्धारित होने के कारन कुछ को अभी प्रतीक्षा सूची में रहना पनेगा।

नव आगंतुको का परिसर में विस्वविद्यालय के ब्लोग्गेर्स ,अद्यापकों और आपके वरिष्ठ साथियों की और से स्वागत है .

सोमवार, 30 जून 2008

क्षेत्रीयता और राजनीति

इस समय देश में क्षेत्रीय भावनाए तेजी से विकसित हो रही है ,जो अखंड भारत की संकल्पना के लिए हानिकारक है.क्षेत्रीय भावनाओं के उफान लेने का एक कारण आर्थिक सांस्कृतिक असुरक्षा की भावना एवं कुछ व्यक्तियों की राजनैतिक महत्वाकांक्षा है।

चालाक व्यक्ति भोले-भाले लोगों को अपने हितों के लिए इस्तेमाल करते है.जिसके लिए भारत में व्याप्त आर्थिक विषमता का बढ़ते जाना और सांस्कृतिक विरासत के लिए पागलपन का होना भी दोषी माना जा सकता है.जिसमें पर्याप्त विविधता भी है.पूर्वोत्तर राज्यों के अलगाववादी आन्दोलन,राजस्थान के गुर्जर आन्दोलन,कश्मीर का अमरनाथ यात्रा प्रकरण इसी का उदाहरण है।

स्वतन्त्रता प्राप्ति से आज तक इस समस्या को टेकल करने में शीर्ष नेत्रित्व या तो असफल रहा है या उसने अपने हित के लिए इसे बढ़ने दिया है। इस समस्या के उभरने में राजनेताओं ने प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष तरीके से मदद कर देश की अखण्डता को तार -तार करने की कोशिश की है।

देश में गुर्जरों के अहिंसक आन्दोलन के बाद उनकी मांगो के पूरा होने के बाद अब दबाव के लिए हर वर्ग हिंसा का सहारा लेने की कोशिश कर रहा है.जलता जम्मू-कश्मीर इसका उदाहरण है. व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं रहने पर जब नेता ख़ुद को सम्पूर्ण भारत के जनता के नेता के रूप में प्रस्तुत नही कर पाते तो अपने स्वार्थों के लिए क्षेत्रीय हितों की बात करना इनकी मजबूरी बन जाती है।

देश इस समय मंहगाई और क्षेत्रीयता की चुनौती का सामना कर रहा है,जो विकास और हमारी एकता की सारी गणित को ही गदाबदाने पर उतारू है.ऐसे में संयम और धैर्य के साथ मिलजुलकर हमें इन चुनौतियों का सामना करना होगा.

सोमवार, 23 जून 2008

उफ़ ये गर्मी (भोपाल से दिल्ली)

एक शहर से दूसरे शहर में जाने पर कई फर्क पड़ते है.सबसे पहला तो वातावरण का ही पङता है.भोपाल से देल्ली आने पर यह फर्क मुझे सिद्दत से महसूस हुआ.जहा भोपाल का मौसम खुशनुमा है.तो देही में सुख-सुविधा की सारी चीजें होने की बावजूद व्यस्तता के कारण कहीं खोई -खोई सी रहती है.सारे देश की समस्याओं को अपने सर लेकर बड़ी जिम्मेदारी से अपना फर्ज निभा रही है।

तो दूसरी और गर्मी से हलाकान है एक मिनट के लिए बिजली गुल हो जाए तो जैसे जीना मुहाल हो जाता है .बहार निकले नही की उमस से से सामना करना पड़ता है.यहाँ इतनी उमस है की पंखे के निचे से हटे नही की लगता है की सीरे की कडाही से निकाले गए हो,चिपचिपी लिजलिजी ये गर्मी ख़ुद पर ही चिढ पैदा कर देती है।

देश के कोने -कोने से आकर लोग यहाँ बसे हैं.जिससे अपनी विशेषताओं केसाथ इसकी संस्कृति बहुरंगी हो गई है.जो भाषा के स्तर पर तो दिखाई ही पड़ती है जीवनशैली के स्तर पर भी दिखाई पड़ती है।

सच कहूं तो सारे देश की विशेषता एक दल्ली में काफी कुछ देखी जा सकती है.लेकिन इसकी गर्मी से तो भगवान् ही बचाए.यहाँ काफ़ी खुलापन दिखायी पड़ता है.देश के मिजाज के साथ दिल्ली भी बदल रही है.

शनिवार, 7 जून 2008

महारास्त्रियों के प्रेम का पाखण्ड

महारास्त्र की गठबंधन सरकार महारास्त्रियों के लिए मरीन ड्राइव के निकट समुद्र में शिवाजी की ३०९ फीट उची प्रतिमा बनाने वाली है.यह सब महारास्त्रियों के लिए कुछ कराने के नाम पर किया जा रहा है जैसे मराठियों के विकास रोजगार गरीबी का काम ख़त्म किया जा चुका हो अब केवल कृत्रिम मूर्तिया बनानी शेष हो।

विडम्बना है की जो महापुरुष जिन चीजो का विरोध करते हैं,उनके अनुयायी उनके सिधान्तो को अंगूठा दिखाकर उनके नाम पर वही काम करते है.जैसे कबीर ने उपासना मे वाह्यआडम्बर का विरोध किया तो अनुयायियों ने उन्ही की मूर्ति लगाकर उनके नाम पर मठ बनाए.शिवाजी ने पर्वत पहाडों को अपना दोस्त माना उन्ही के बीच पले बढे. उनकी रक्षा किचेतना उनके मन में थी तो अनुयायियों ने समुद्र के बीच कृत्रिम द्वीप बनाकर उनकी मूर्ति लगाने की ठान ली ।

वह भी तब-जब विश्व बढ़ते प्राकृतिक असंतुलन को लेकर चिंतित है.विश्व के सामने एक गंभीर समस्या के रूप में ग्लोबल वार्मिंग और बढ़ता प्राकृतिक असंतुलन एक चुनौती बन गया है.ऐसे में इस चुनौती कोठेंगा दिखाकर प्रकृति को नुकसान पहुचाकर ,महारास्त्रियो के लिए कुछ करने का पाखण्ड क्यो ?पर्वत पहाड़ नदी तालाब समुद्र जिस भारतीय,महारास्त्री नायक के अजीज थे उन्ही के नाम पर उनके दोस्तो को नुकसान क्यो पहुचाया जा रहा है?

......और तब जब पहले किए गए इस तरह के प्रयासों को देश की सुरक्षा और पर्यावरण की चिंता से रोका जा चुका है.क्या यह संविधान विरोधी कार्य महारास्त्र वरोधी कार्य नही है.वोट कमाने के बहुत तरीके है.इसके लिए रोजगार बढ़ाने गरीबी उन्मूलन और विकास का कार्य किया जा सकता है.

रविवार, 1 जून 2008

मीडिया वार पर चर्चा

राजधानी भोपाल के स्वराज्य भवन में आज (भोपाल में छिड़ी) मीडिया वारकिसके हित में विषय पर चर्चा हुई । जिसमें भोपाल के सभी प्रमुख पत्रकारों प्रतिनिधियों ने हिस्सेदारी की। इसमे मीडिया के छात्रों ने इनके विचारों को सूना।
इस चर्चा में अभिलाष खांडेकर (भास्कर)दीपक तिवारी (दवीक )एल एन शीतल (राज)पी पी सिंह (प्रमुख,पत्रकारिता बिभाग माखनलाल विश्वविद्यालय )राकेश दिक्सित शिव अनुराग पतेरिया ,विजय दत्त श्रीधर समेत aनेक पत्रकारों ने अपने विचार व्यक्त किए।
जिसमे श्री पी पी सिंह ने कहा इस प्रतिस्पर्धा में पाठको का हित ही है.क्योंकि इससे रीडर तक अपनी पैठ बढ़ने के लिए जो खबर रोक दी जाती थी अब उस तक पहुच सकेगी । लेकिन प्रतिस्पर्धा और युद्ध में अन्तर करना जरूरी है क्योंकि प्रतिस्पर्धा स्वस्थ होती है लेकिन युद्ध में व्यक्तिगत दुर्भावना केन्द्र में आ जाती है.खांडेकर जी नेकहा समय बदल रहा है प्राथमिकताएं बदल रही हैंऐसे में आने वाले बदलाव का स्वागत करना चाहिए .......

क्रमशः

शुक्रवार, 30 मई 2008

दुखी राम के दुःख क गठरी

गर्मी क मौसम रहा ,दुखीराम के अमरैयाँ क सब पेड़ बड़े-बड़े आम के गुच्छा से लड़ा रहे.उ अमरैयाँ से लरिका लोग आम न तोडें एही खातिर घर क सयान दुखीराम के बगीचा में भेजी देहें .लेकिन जैसन दुखी क आदत रहा खटिया पर पड़ती देश दुनिया क फिकिर उनके घेर लिहेस .दुखी सोचई लगे।

नेता लोग कहत्हीं देश में अपराधी एकदम निडर होइगा ह एन काहे की देश क न्याय व्यवस्था इतना धीमा बा की सजा मिलई में अप्राधीन और पीड़ित लोगन क उमिर गुजारी जाथ.एही माँ गरीबन क टी पूरा क पूरा घरे उजर इ जाथ एक त उनके अपराध क दंश भोगे पडत दूसरे कानून व्यवस्था से कस्ट उठाए पडत .लेकिन का एही समस्या क जिम्मेदारी केवल जज लोगन क बा ....

काहे की सभी के पता बा की पहिले थाने में मामला दर्ज कराए पडत फ़िर पुलिस ओकर जांच करत अगर पुलिस ठीक से जांच न करे ,जांच में देरी करे त मामला के निर्णय में त देरी हो इ बे करी...... त का एकर जिम्मेदारी जज साहेब लोगन क बा।

साथ में अगर पुलिस क जांच ग़लत रहै त पीड़ित के न्याय भी न मिले त का एकर जिम्मेदारी जज साहेब लोग न क होई चाहे.और ऐ त सब के पता बा पुलिस क्जांच कई कारण से प्रभावित हो थ । दोसर ऐ कि आज न्यायलय में जज क बहुत पद खाली बा अब काम कर इ वाला लोग इ न रह इ त काम क इ से होई .अब नियुक्ति क काम त सरकार क र थ .फ़िर इ लोग बेचारी न्याय पालिका के काहे बदनाम कर थीं भाई।

एक बात और इ कि इ देश में जे सब से शक्तिशाली बा उ ह नेता लोग काहे कि क़ानून बनावे क काम ता विधायिका बा अ उर ओकर पालन कराव इ क काम कार्यपालिका क बा .अ उर दू न उ जगह नेता नाही टी अधिकारी लोग काम कर थीं । अ उ र नेता अधिकारी में रिश्ता जरूर अ इ रहत और जब रिश्ता बी टी एक दूसरे के ख़िलाफ़ काम कहे क रिहिन .

जब सारी शक्ति इ न ही के पास बा टी बताव एह में जज साहेब लोगन क कवन दोष ....फ़िर इ लोग ओनके दोषी काहे बताव थीं भाई .....जबकि समय-समय पर उनके मिला अधिकार में भी कटौती क बात भी इ लोग कर थीं जहाँ तक विश्वास क बात बा तअन्य संस्थान के तुलना में आज भी न्यायपालिका पर लोगन क अधिक बा।

गरीब होई चाहे आमिर हर तबका ,अपराध छोटा होई या बड़ा न्यायालय मेंजरूर लिआवाई चाह थीं । इ बात लोगन क न्याय्पलिज्का पर विश्वास दिखावता.

जबकि चुनाव के दिन खाली रहे पर भी लोग वोट डाली नाही जातें ,आख़िर काहे ?जवान अधिकार पावे के खातिर इतना कुर्बानी देहे पड़ा बा उही के प्रति इ बेरुखी । के बा एकरे लिए जिम्मेदार?केकरे प्रति लोगन क विश्वास बा केकरे प्रति नाही।इ बात से पता च ल थ विधायिका में लोगन क विश्वास कम समय में ही बहुत घटी गा बा. अभ भी समय बा व्यवस्था में सुधर करी क लोगन क विश्वास बढ़ावा जाई सकत।

इही सोचत-सोचत दुखी क नीद खुलिगा,अ उ र दुखी चिंतित होई गा ऐ न ।

शुक्रवार, 23 मई 2008

एड्स पर वर्कशॉप /विज्ञप्ति

आज २३ मई ko भोपाल के पलाश रेजिदेंसी होटल में मध्य प्रदेश राज्य एड्स कंट्रोल सोसाइटी द्वारा मीडिया के छात्रों के लिए एड्स पर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया .जिसमें मीडिया के अनेक धुरंधरों और विषय विशेषज्ञों ने छात्रों को इस विषय पर रिपोर्टिंग करने की जरुरत और बारीकियाँ सिखाई।

इस कार्यशाला में शैलेश जी (एक्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर आज तक )दीपक तिवारी (ब्यूरो प्रमुख म०प्र,द वीक )ललित शास्त्री (द हिंदू )परियोजना संचालक मध्य प्रदेश राज्य एड्स नियंत्रण सोसाइटी डाक्टर ब्रजेन्द्र मिश्रा भोपाल मेडिकल कालेज ,डाक्टर सक्सेना ,डाक्टर सोमा बोस और डिप्टी (एम् पी एस सी एस)उपस्थित थे।

सक्सेना जी ने अपने पॉवर पॉइंट प्रजेंतेसन में एड्स की गंभीरता के विषय में बताया .उन्होंने आगे बताते हुए कहा की यू एन के मिलेनियम गोल की असफलता की एक बड़ी वजह केवल यह बिमारी बनती दिख रही है.क्यों की दक्षिण अफ्रीकी देशों में इसके कारण किसी घर में कुछ बुधे बचे हैं .तो कुछ घरों में एक महिला या एक पुरूष बचे हैं.इसके संक्रमण की दर प्रत्येक जगह एक समान नही हैं.इससे लोंगों की जीवन प्रत्याशा घटी है.अनाथों की संख्या बढ़ रही है.विधावावन की संख्या में द्ब्रिद्धि हो रही है.क्योंकि उत्पादक जनसंख्या इसकी चपेट में आकर ख़त्म हो रही है।

डाक्टर ब्रजेन्द्र मिश्रा ने एड्स के फैलनेके कारणों और लक्षणों को बताते हुए कहा पत्रकार समस्या को समझाने की कोशिश नही कर रहे हैं.उनको हमारा साथ देना चाहिए.आगे बताया एड्स ४स्तेज् में फैलता है.(एक)बारह सप्ताह में इसके लक्षण को जाना जा सकता है (दो)३-५ साल (तीन) ५- ८ साल (चार)८-१२ साल इसके लक्षणों कोभी बताया जिसमें ६ माह के भीतर बालों का सफ़ेद होना ,दातों का टूटकर गिरना शरीर पर चकत्ते पड़ना.वजन का अचानक १० प्रतिशत से ज्यादा गिरना.लेकिन इसी से यह नही माना जा सकता की एड्स है क्योंकि ऐ चीजें दूसरी ब्मारियों का भी लक्सन है.इसकी अभी कोई वैक्सीन नही बन पायी है क्योंकि एच ई वी ,सी दी ४ कोसिकाओं पर ही हमला कर ता है और उसी से वैक्सीन बननी है.नेवार्पिं दवा से लीवर पेन के समय यह दवा पीड़ित महिलाओं को देकर होने वाले बच्चे में संक्रमण की संभावना को कम की या जा सकता है।

उप निदेशक जी ने कहा इस बिमारी के विषय में सूचना तो बद्ढ़ रही है लेकिन जागरूकता नही.जागरूकता आने से व्यवहार में परिवर्तन आता है सूचना से नही.व्यवहार में परिवर्तन लाने से हमें इसके ख़िलाफ़ सफलता मिलेगी.जिससे इससे लड़ने में सफलता नही मिल पा रही है .महिलाओं में इसके बद्ढ़ ने का कारन उन्होंने महिलाओं में निर्णय लेने का अधिकार ना होना और समाज के धाचे को जिम्मेदार बताया जिससे यह राक्षस इंको आसन शिकार बना रहा है.इस पर चर्चा होनी चाहिए।
दीपक जी ने बताया इसकी रिपोर्टिंग करते समय भवि पत्रकारों को ध्यान देना चाहिए पीड़ित को अपराधी कितारह नही पेश करना चाहिए बल्कि उसे सर्वैवल की तरह पेश करे.परिवार का मान मर्दन न ho .एक अच्छा मनुष्य ही एक अच्छा पत्रकार बन सकता है(स्थान के अनुसार)

ललित जी ने रिपोर्टिंग करते समय पत्रकारों को सूचनाओं की मानीटरिंग के साथ विशेश्ग्यीय दृष्टि रखने और दैनामिक दैलाग स्थापित करने की सलाह दी।

शैलेश जी ने सलाह दी की पत्रकार ख़बर प्रस्तुत करते समय प्रस्तुति ऐसी रखें जिससे पाठक दर्शक उसमें इन्वाल्व हों.मानवीय पहलू केस स्टडी पर ध्यान देंताक्निकी रिसोर्स पर्सन से भी सम्पर्क बनाएं .उत्तरदायित्व का भाव सदा रहना चाहिए.

जीवन पथ पर चलना होगा

टूट रहीं हों उम्मीदें
फ़िर भी
नीड़ का निर्माण तो करना होगा

नया सवेरा हो जब तक
थर-थर गिर पड़
चलना केवल चलना होगा

जीवन संघर्ष होता मधुर
रस इस अहसास का तो चखना होगा
रैन- दिवा संघर्ष भी होता मनोहर
कभी स्पंदन कभी क्रंदन

दुःख तकलीफें फैलाएंगी बाहें ,फ़िर भी
फहरा विजय पताका अपनी
जीवन पथ पर चलना होगा ।

शनिवार, 17 मई 2008

स्थानांतरण

यूनिसेफ के मध्य प्रदेश चैप्टर के संचार अधिकारी अनिल गुलाटी जी का स्थानान्तरण कोलकाता हो गया है .आज भोपाल के माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय में उनका विदाई समारोह आयोजित किया गया.जिसमें भोपाल के सभी प्रमुख पत्रकार और विश्वविद्यालय के पूर्व और वर्तमान छात्र शामिल हुए ।
गुलाटी जी ५ वर्ष से भोपाल में कार्यकर रहे थे.पत्रकारों और छात्रों ने भावुकता के साथ विदाई दी,और आत्मीय जनों ने छात्रों से अपने अनुभव बांटे .जाते -जाते गुलाटी जी ने भावी पत्रकारों से बच्चो और महिलाओं के लिए काम करने का वादा कराया.कार्यक्रम में विजय मनोहर तिवारी ,सूर्यकांत पाठक ,दयाशंकर जी ,आशीष जैन शिव नारायण पतेरिया पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष पी पी सिंह जी ,संदीप जी, प्रसून मिश्रा और बड़ी संख्या में छात्र उपस्थित थे.

भोपाल की मीडिया में मची मारकाट

आजकल भोपाल मीडिया जगत में मारकाट मची हुई है.एक-दूसरे को पछाड़ने और पाठकों को आकर्षित करने के लिए सभी अखबार अपनी कीमत घटा रहे हैं.यह सुरूआत राज-एक्सप्रेस ने की जब उसने अपनी कीमत घटा कर एक रुपये पचास पैसा कर दिया.जल्द ही अन्य अखबारों ने भी अपनी कीमत घटाई।

सबसे बड़ी जंग तो नवदुनिया ने शुरू की ,जो नव मई से पहले भोपाल में राज्य की नई दुनिया नाम से प्रकाशित होता था.नया नाम और रूप धरने के चक्कर में इसने और कुछ किया हो ना किया हो,अपनी कीमत घटाकर मीडिया में कीमत युद्ध की शुरुआत कर दी ,जब इसने अपनी कीमत एक रूपया कर लिया.अब भोपाल का भाष्कर भी अपनी कीमत एक रुपया करने वाला है.सबसे आक्रामक मार्केटिंग रणनीति के तहत राजस्थान पत्रिका भोपाल से अपनी शुरुआत कुछ दिनों बाद करने वाला है जो प्रत्येक घर में अपने कर्मछारी भेज कर कटोरे भेंट कर रहा है.इसने अपनी कीमत तो एक रुपया रखी ही है,विज्ञापन भी खूब कर रहा है.सारा शहर पत्रिका और नव दुनिया के होर्डिंग अता पड़ा है।
इसे में उपभोक्ताओं और पत्रकारों की बल्ले बल्ले हो गई है.जिन्हें कम कीमत पर अखबार और अधिक तनख्वाह पर नौकरी मिल्रही है.

बालक का मन

उपहास का डर
मैं जब -तब,
ह्रदय के सागर से ,
भावों के मोती चुनकर
शब्दों की माला में पिरोता

और मन ही मन मुदित होता
जैसे पायी हो कोई निधि

क्या है यह तो नही समझता
लेकिन इस भय से की देख इसे
उपहास करेगा कोई भी
मेरी सृजनात्मकता का
कहाँ -कहाँ नही छिपाता फिरता ।

गुरुवार, 15 मई 2008

विकास यज्ञ

चाहुनोर विकास के लिए
सरकार ने कथा सुनी
पूंजीपतियों ने किया मंत्र प्रवाह
और armaan hamaare hawan बने
हम टू श्रोता -दर्शक रहे हमको मिला प्रसाद
इस यज्ञ का dhooaan यहीं तक फैला
हम देख रहे अपनी और शांत आकाश
किसी ने बताया हवा के साथ
उसी ओर jaayegaa........होगी स्वर्ग कुसुमों की बरसात
हुए itane दिन....अब टू आस भी गई
अब ऐसे ही फफक-फफक कटेगी रात.

विकास यज्ञ

चाहुनोर विकास के लिए

सरकार ने कथा सुनी

पूंजीपतियों ने किया मंत्र प्रवाह

और armaan hamaare hawan बने

हम to shrotaa -दर्शक रहे हमको milaa prasaad

इस यज्ञ kaa dhunaa

किसान और समाज का अंतर्विरोध

किसान
गर्मी की दोपहरी में
दूर कहीं धूप में,
जहाँ आग है बरस रही
एक आकृति हिलती-डुलती है,
पकड़े हलों की मूंठ हाथ में

जल रहा है पेट की आग से
उसका खून ही पसीना बन टपक रहा
तन पर चीथड़े हैं उस पर भी
सूर्य की तपन का क्रोध
धरती भी उसी को जलाकर प्रतिशोध ले रही

तपती लू को झेलते
इस आस में
मिलेगी भर -पेट रोटी
अगले साल किसी पेड़ की छांह में

इस विस्तीर्ण नभ के नीचे
इस हतभाग्य को
सपनीली दीवारों के ऊपर
मिलती यह अलौकिक छत है ।

शीत में

शीत में जब हम घरों में बैठे
हीटर-आग के पास बैठे कांप रहे होते हैं
पानी को बर्फ समझ छूते हैं
हाड़ कंपा देनी वाली ठंड में

वह कुछ चीथड़े पहने
खेतों में सिंचाई की क्यारियां बनाते
पानी में खड़ा रहता है ठिठुरते कंपकपाते
घर से दूर कहीं सेवार में

उस समय भी साथ देते हैं
वही मरते मिटते सुनहरे सपने

बरसात में

जब हम वर्षा की फुहारों का इन्तजार करते हैं
यह भी इंतज़ार करता है
एक आशा से

वर्षा की सारी बूंदे खपरैलों से
टपकती भिगोती हैं इसके वजूद को

बादलों के गर्जन और बिजली की तड़प बढ़ाती हैं
इसके आस और विश्वास को

लहलहाती फसलों से आह्लादित
उनके पकने का इंतज़ार करता है
तैयार फसल से निकला अनाज
तमाम कर्जों  और सूद को चुकाने के बाद
कुछ दिनों की ही खुशियां दे पाती हैं

हमारी भूख मिटाने वाला ख़ुद भूखों सोता है
हमें जीवन देने वाला भूखों मरता है
अगले वर्ष फ़िर शुरू होता है वही द्वंद्व और अंतर्विरोध।

सोमवार, 12 मई 2008

आस-पास(अपील )

मेरे वरिष्ठ ब्लॉगर भाइयों (मेरे विभाग के )ब्लॉग बनाने के बाद आप कितना थक गए की पोस्ट करना छोड़कर आराम फरमाने लगे?जब उम्र साथ नही दे रही थी तो इस कठिन काम की शुरुआत ही क्यों की?
साहिबानों आपकी लेखनी में जादू है.आपकी लेखनी से निकले शब्दों को एक नजर देख लेने के लिए" जल बिनु मछली "जैसे पाठक तड़प रहे हैं.इसलिए अपनी थकान का ध्यान छोड़कर लिखना शुरू कर दीजिए.आशा है आप अपने पाठकों पर रहम करेंगे।


- व्यथित

बातें कैम्पस की

१०-११ मई को माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय में "साक्षात्कार लेखन "विषयक एक कार्यशाला का आयोजन किया गया।
जिसमें देश के जाने-माने पत्रकारों ने भावी पत्रकारों को साक्षात्कार लेने के गुड सिखाये।इस कार्यशाला में श्री आलोक पुराणिक,श्री श्वेता सिंह (न्यूज़ 24)श्री ब्रिजेश राजपूत (स्टार न्यूज़ )श्री राजेश सिरौथियाँ (आउट लुक)श्री विनय उपाध्याय (दैनिक नईदुनिया )श्री दीपक तिवारी (डी वीक )श्री विजय मनोहर तिवारी (भाष्कर) ने छात्रों के साथ अपने अनुभवों को छात्रों के साथ बांटा और बारीकियां बताई।
छात्रों को दोहरा हर्ष टैब हुआ जब ,उन्होंने अपने पसंदीदा पत्रकोरों जिसे स्क्रीन पर साक्षात्कार देखा था या अखबार में पढ़ा था,उनकी बातों को सुना ही नही ,उनका ही साक्षात्कार लेने का मौका मिला.हमेशा अपने प्रश्नों से सामने वालों के छाके छुडाने वाले इन पत्रकारों को कई बार ऐसे प्रश्नों का सामना करना पड़ा जिससे साक्षात्कार देने में आने वाली कठिनैयाँ उनकी समझ में आई और उन्हें सकपकाना पड़ गया.जब वरिष्ठ पत्रकार श्री विजय से छात्रों ने पूछा की श्रीमान ऐ बताइएआप अपने कैरिअर में थोड़े समय में एक टीचर से पत्रकार,इसके बाद उपन्यासकार बने इसके बाद आप क्या करने वाले हैं.

गुरुवार, 8 मई 2008

बहस

कुछ ब्लोगों पर अपनी अभिव्यक्ति के लिए गलियों का इस्तेमाल किया जाता है.यह कहाँ तक उचित है.यह टू अपनी कुंठा को ही प्रकट करना है.क्या शिष्ट जन की भाषा इतनी कमजोर हो गई है की अपने भावनाओं को प्रकट करने के लिए गलियां जरुरी हो गई हैं.किसी की आलोचना करने के लिए निकृष्ट भाषा का प्रयोग कर आलोचक किस शिष्टता और सज्जनता का परिचय देता है।
इस तरह की भाषा के प्रयोग के से मन के गंदे आवेग जो मस्तिष्क में कुलबुलाते रहते हैं बाहर निकल जाते हैं.इससे कुंठाएँ मनोग्रंथियाँ नहीं बन पाती .इससे देश में मनोरोगियों की संख्या नही बढ़ रही.और मनोचिकित्सा पर सरकार कोज्यदा खर्च नही करना पड़ा रहा है.लेकिन मनोचिकित्सक जो बड़ी -बड़ी देग्रीयाँ लिए बैठे हैं वे खुश न होंगे.वे अपने ज्ञान और पैसे को कैसे बाधाएं.

जी भर हंसो

दो गांव वाले एक छप्पर में बैठ बातें कर रहे थे.इसी बीच रामचरितमानस का पाठ कराने की बात होने लगी।
एक ने दूसरे से पूछा- कौन सा कांड कराऊँ जिससे सब जल्द ही ख़त्म हो जाए .
दूसरा -अग्निकांड ।

(घर में आग लगा दो सब जल्दी से जलकर ख़त्म हो जायेगा)

बुधवार, 7 मई 2008

शक्ति और अर्थ की गुत्थी

इस समय पूरे संसार के बुद्धिजीवी स्त्रियों की दशा और दिशा पर चिंतन में उलझे दिखाई देते हैं .इनके द्वारा स्त्रियों की दशा पर चाहे जितना चिंतन और हल्ला किया जा रहा हो,उसका कोई सार्थक हल निकालता नही दिखाई दे रहा है.स्त्री विचारकों में इसके खिलाफ जबरदस्त आक्रोश दिखाई दे रहा है.उनका आक्रोश इस कदर बढ़ रहा है की वो पुरूष नेतृत्व में बनी भाषा को भी बदल देना चाहती हैं.उनका आन्दोलन क्या रंग लाता है,देखने की चीज़ होगी?
आज राज्यसभा में महिला आरक्षण विधेयक पेश किया गया,इससे ही महिला नेत्रियाँ एक दूसरे को बधाईयाँ दे रही हैं.यह खुशी की बात है.लेकिन उन्हें अभी अपने अधिकारों के लिए बड़ी लड़ाई लड़नी है.वैसे छोटी ही सही यह सफलता न्याय की और एक कदम हैऔर खुश होने लायक है।
स्त्री ससक्तिकरण के लिए लोग स्त्रियों को आत्मनिर्भर बनाना चाहते हैं.पर यह ऐसा सम्बन्ध नही है,शक्ति जिसके पास होती है,न्याय और धन भी उसके पास होता है है.जो शारीरिक रूप से शक्तिशाली हो या शक्ति का कोई और साधन जिसके पास हो उसे दरिद्र कम देखा गया होगा.साईकिल के पहिए को आपने घूमता देखा होगा,वह पहिया एक ह्वील जिसे गांव किभाषा में कुत्ता कहते हैं के सहारे घूमता है.लोग सोचते हैं पहिया घूम रहा है,पर वास्तविकता यह है की वह ह्वील हिउस पहिये को घोमाता है.ऐसे ही शक्ति धन को अपने चारों और घुमाती है.लोग अपनी समस्याओं का हल धन में खोजते हैं.जबकि उसका उत्तर शक्ति में छिपा है.प्राचीनकाल से ही जिसने शक्ति हासिल की धन भी उन्हें मिला.जिनके पास शक्ति और धन नही था और उन्होंने बादमें कठोर श्रम द्वारा सहक्ति हासिल की उन्हें राजसत्ता भी मिली है.आज तक पुरूष ने महिला को अधिकार इस लिए नही लौटाये हैं क्योकि विरोध कराने की उसमें ताकत नही है.इस लिए अपने अधिकारों को मांगने से पहले महिलाओं को इन अधिकारों को संभालने और हासिल कर लेने की ताकत पुरुशूं के सामने दिखानी होगी।

एक पुराना श्लोक इसको बताता है -
क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल है
उसको क्या जो विष दंतहीन और सदा सरल है।
इस लिए जरुरी है की महिलाएं अपने आपको पुरुषों के सापेक्ष शारीरिक रूप से मजबूत बनायें.कोइभी निर्णय लेने से पहले दिल के साथ बुद्धि का भी प्रयोग करें.इतिहास गवाह है की किसी को भी उसका अधिकार मांगने से नही मिला है.उसके लिए उसे सघर्ष करना पड़ा है.अधिकार टैब तक नही मिला है जब तक शासक या अपहर्ता के पास कोई भी विकल्प रहा है।
अर्थ और सम्मान टू शक्ति की दासी हैं.शक्ति के पास आते ही ये स्वतः खींची चली आती हैं.

मंगलवार, 6 मई 2008

उद्देश्य

इस ब्लॉग का उद्देश्य सामाजिक, सांस्कृतिक, सामायिक मुद्दों, घटनाओं, मनोरंजन और आस-पास के विभिन्न विषयों पर अपनी अभिव्यक्तियों को एक मंच देना है .ब्लोगों पर लिखी जा रही खुराफाती सामग्री और USAMEN UTPANN अराजकता के खिलाफ आवाज उठाना है .जिससे भारत ME अपने SHAISHVAAVASTHA ME भी यह विधा अपनी अलग SRIJANSHIL विधा के रूप मी पहचान बना सके.