विचार

बुधवार, 9 जुलाई 2008

कुछ औरों को भी दे- दो.

२७ जून को मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा नोटिफिकेशन जारी होने के बाद यमुनापार (इलाहाबाद) में देश का पहले ग्रामीण विश्वविद्यालय नेहरू ग्राम भारती विश्वविद्यालय के बनने का काम शुरू हो गया है। जिसकी आधारशिला पंडित जवाहर लाल नेहरू ने १९६२ में रखी थी। वैसे... पूर्वांचल की आबादी और आवश्यकता को देखते हुए इसकी सख्त जरूरत महसूस की जा रही थी।
इस विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद, इलाहाबाद में दो केन्द्रीय विश्वविद्यालय होंगे इसके साथ एक मुक्त विश्वविद्यालय, एक एनआईटी, एक आई आई आई टी एवं कई शोध संस्थान देश और प्रदेश की शिक्षा में योगदान दे रहे हैं। यह एक गौरवशाली समय है। लेकिन इसके साथ यह (पूर्वांचल) क्षेत्र गरीबी बेरोजगारी के मकड़जाल में फंसा हुआ है, जबकि (अन्य जिलें भी) खनिज मानव और प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है।
कुछ जिलों में तो पर्याप्त डिग्री कॉलेज, इंटर कॉलेज तथा प्राथमिक विद्यालय भी नही हैं। यहाँ आदिवासी और पिछड़ी जातियों की आबादी भी पर्याप्त है। इनकी बात छोड़ भी दी जाय तो सामान्य वर्ग की भी एक बड़ी जनसंख्या की आर्थिक स्थिति ऐसी नही है, कि बच्चे अपना घर छोड़ कर इलाहाबाद पढ़ने जा सके। इन जिलों की उच्च शिक्षा की रीढ़ पूर्वांचल विवि से २५६ महाविद्यालय सम्बद्ध हैं, जिससे सत्र में देरी होती है। कई बार इसकी वजह से इन महाविद्यालयों के छात्रों को अच्छे अवसर समय से अंकपत्र न मिलने के कारण छूट जाते हैं। इलाहबाद विवि (शहर से) बाहर के महाविद्यालयों को सम्बद्धता नहीं देता।
ऐसे में अच्छा होता यह विवि पूर्वांचल के किसी अन्य जिले में स्थापित किया जाता। अपेक्षाकृत विकसित इस जिले का इससे कुछ न बिगड़ता। जिससे इन पिछडे जिलों के गरीब छात्रों को अच्छी शिक्षा मिलती । साथ ही यहाँ का अकादमिक माहौल भी सुधरता (अच्छी शैक्षणिक गतिविधियों और विद्वानों के आगमन से)। विवि में नियुक्तियों से और तनख्वाह का कुछ हिस्सा तो कर्मचारी यहाँ खर्च ही करते, जिससे यहाँ की जर्जर अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में मदद मिलती। सब-कुछ समरथ को मिले, कमजोर ताकता रहे, यह कहाँ का न्याय है। इन नीतियों से विषमता बढती है घटती नहीं।

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