सत्ता की छटपटाहट नेताओं के विवेक को किस तरह नुकसान पहुंचा सकती है. इसका
नमूना अक्सर हम देखते हैं. यह लालसा नित नई गहराइयां नापती है. अब देश की ग्रैंड ओल्ड
पार्टी की सबसे बड़ी नेता का द हिंदू अखबार में लिखा लेख भी इसी का नमूना है.
वैसे ही सत्ता की अकुलाहट में यह पार्टी पुराने उन सभी अलिखित नियमों को रौंद
चुकी है कि विदेश मामलों में सत्ता और प्रतिपक्ष एक पेज पर रहेंगे. पाकिस्तान पर एयर
स्ट्राइक के बाद अब फिलीस्तीन इजराइल युद्ध मामले में ग्रैंड ओल्ड पार्टी का रूख
उसी कड़ी को आगे बढ़ाता है, जिसमें कांग्रेस की सरेंडर नीति की झलक दिखती है. जिसकी
कड़ी आगामी कुछ महीनों में ही आने वाले लोकसभा चुनाव में मुस्लिम वोटों का लालच और
विगत में शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने की घटना और इससे पीछे
तक जुड़ती है.
देश की ग्रैंड ओल्ड पार्टी गुस्से में है, और इनकी नेता सोनिया गांधी ने द
हिंदू में आलेख लिखकर भारत सरकार के उस फैसले की आलोचना और निंदा की है, जिसमें
भारत सरकार ने इजराइल और हमास के बीच संयुक्त राष्ट्र में लाए गए युद्ध विराम के
प्रस्ताव में वोटिंग नहीं की. इसमें उन्होंने लिखा है कि कांग्रेस वोटिंग के दौरान
भारत के गैर हाजिर रहने का कड़ा विरोध करती है, इजरायल फिलीस्तीन के उन लोगों से
उस हमले के लिए बदला ले रहा है, जिससे उनका कोई मतलब नहीं है. उसने गाजा पट्टी को
डेढ़ दशक से खुला जेल बना दिया है. यह ऐसा समय है जब मानवता की परीक्षा हो रही है.
अब सवाल यह उठता है मानवता की परीक्षा अभी ही क्यों हो रही है, जब इजरायल हमास
आतंकियों पर कार्रवाई कर रहा है, हमास से ये लोग शस्त्र छोड़कर बातचीत से मुद्दे
सुलझाने की अपील क्यों नहीं कर पाए, आतंकियों को आप क्यों नहीं समझा पाते कि किसी
इंसान की हत्या ठीक नहीं है. क्या किसी कौम पर पांच हजार रॉकेट मानवता की रक्षा के
लिए दागे गए थे, किसी देश की सीमा में घुसकर वहां के नागरिकों को बंधक बना ले जाना
और मानव शील्ड की तरह इस्तेमाल मानवता की रक्षा के लिए किया जा रहा था या हजारों
इजरायलियों की हत्या आपके हिसाब से पवित्र कर्म था?
दरअसल, यह कांग्रेस की सरेंडर नीति का ही परिणाम है, कि जब देश की संसद पर आतंकी हमला हुआ, मुंबई में आतंकी हमला हुआ तब भी कांग्रेसनीत केंद्र सरकारें आत्मरक्षा के लिए कोई कदम नहीं उठा सकीं और बातचीत का गाना गाती रहीं. फिर आतंकियों के हौसले ऐसे बढ़े कि वो बनारस में संकट मोचन मंदिर तक विस्फोट से बाज नहीं आए. यह वही सरेंडर नीति है कि जब पाकिस्तान ने भारत पर हमला किया तो हम जीत रहे युद्धों के बीच युद्ध विराम कर अपनी जमीन पर एलओसी बनाते रहे हैं.
दरअसल, यह मानवता इसलिए जगी जान पड़ती है क्योंकि कुछ महीनों बाद लोकसभा चुनाव है और ग्रैंड ओल्ड पार्टी को पता है कि दुर्भाग्यपूर्ण रूप से देश की सेकेंड लार्जेस्ट रीलिजियस पॉपुलेशन का बड़ा चंक धार्मिक आधार पर वोटिंग करता है, अच्छा बुरा तय करता है और इस तरह की चीजों से खुश होता है, भले ही इन बातों का भारत की कम्युनिटी से लेनादेन हो या न हो. देश की सत्ता में आने के लिए कांग्रेस को क्षेत्रीय पार्टियों को हराकर इसके बड़े हिस्से की जरूरत है. इसी कारण इस कम्युनिटी को बस खुश करने के लिए यह आलेख आया है. क्योंकि कांग्रेस नेता ने देखा होगा कि इजरायल हमास युद्ध के बीच इस कट्टरपंथी वर्ग ने अलीगढ़ से केरल तक विरोध प्रदर्शन किया है. इससे पार्टी को तुष्टिकरण के लिए कदम उठाने की प्रेरणा मिली.
कांग्रेस नेता का पर्दे की ओट से हमास पर कार्रवाई का विरोध का कदम उसी की अगली श्रृंखला है जब कांग्रेसनीत सरकार मुस्लिम महिलाओं की दशा सुधारने के सुप्रीमकोर्ट के क्रांतिकारी फैसले को मौलवियों की तुष्टिकरण करते हुए उनके पक्ष में संसद से पलट दिया था.
आलेख में कांग्रेस नेता लिखती हैं कि इजरायल उस आबादी से बदला लेने पर ध्यान
केंद्रित कर रहा है जो काफी हद तक असहाय हैं और निर्दोष भी, जैसे कि उनको जंग के
मैदान के हालात की संपूर्ण जानकारी हो. हम तो कई दशक से आतंक का दंश झेल रहे हैं,
और हमेशा निशाने पर रहते हैं, हमारे साथ भी यही होता है कि आतंकी पहले हमारे लोगों
का खून बहाते हैं और फिर उनके संरक्षक यही कहते हैं कि बात करो नहीं तो खून बहेगा.
अगर पर्दे की ओट से हम आतंकियों पर कार्रवाई पर सवाल उठाएंगे तो हमारे साथ कौन
खड़ा होगा.
भारत सरकार ने वैसे ही अपने पुराने स्टैंड के अनुसार स्वतंत्र फिलीस्तीन राज्य का समर्थन किया है, जो कि उचित है. लेकिन ग्रैंड ओल्ड पार्टी सिर्फ भारत में एक कट्टर तबके को प्रसन्न करने के लिए पुलिसिया कार्रवाई को रोकने जैसा काम करने की कोशिश कर रही है. वरना लेख की जगह उसे सरकार से बात करनी चाहिए थी. आत्मरक्षा का हक तो कानून भी देता है.
हालांकि इससे सभी सहमत होंगे कि शव किसी पक्ष का हो दुखद
हो और ऐसा दुखद दिन न देखना पड़े, और इसके लिए इजरायल को अतिरिक्त सावधानी रखनी
चाहिए कि फिलीस्तीन के आम लोगों को नुकसान न पहुंचे. लेकिन कार्रवाई ही रोककर
गुनहगारों को बचने का रास्ता देना तो फिर खुद पर आक्रमण का न्योता देना ही है.