विचार

शुक्रवार, 29 जनवरी 2010

अखबार



दिन की शुरुआत का इंजन,

पथ निर्धारक समय की झांकी

बस इतना ही,

नहीं

काले अक्षरों का पुलिंदा भर नहीं,

नींद तोड़ने के छींटें हैं एक-एक शब्द

वंचितों की उम्मीद,

संघर्ष की पतवार हैं

ये अखबार

बनाने के पीछे,

लगे हैं हजारों हाथ, दिमाग

यन्त्र चालित नहीं,

विचारों की लौ के रक्षक

कुछ छूट गए,

कुछ त्याग दिए गए को,

अप्रासंगिक बनने से बचाने के लिए,

पहरुए

एक गलती, खेमा बदलने की

गरीब कमजोर से समर्थ मजबूत की ओर,

सिपाहियों की,

कर देता है पानी-पानी