विचार

सोमवार, 30 जून 2008

क्षेत्रीयता और राजनीति

इस समय देश में क्षेत्रीय भावनाए तेजी से विकसित हो रही है ,जो अखंड भारत की संकल्पना के लिए हानिकारक है.क्षेत्रीय भावनाओं के उफान लेने का एक कारण आर्थिक सांस्कृतिक असुरक्षा की भावना एवं कुछ व्यक्तियों की राजनैतिक महत्वाकांक्षा है।

चालाक व्यक्ति भोले-भाले लोगों को अपने हितों के लिए इस्तेमाल करते है.जिसके लिए भारत में व्याप्त आर्थिक विषमता का बढ़ते जाना और सांस्कृतिक विरासत के लिए पागलपन का होना भी दोषी माना जा सकता है.जिसमें पर्याप्त विविधता भी है.पूर्वोत्तर राज्यों के अलगाववादी आन्दोलन,राजस्थान के गुर्जर आन्दोलन,कश्मीर का अमरनाथ यात्रा प्रकरण इसी का उदाहरण है।

स्वतन्त्रता प्राप्ति से आज तक इस समस्या को टेकल करने में शीर्ष नेत्रित्व या तो असफल रहा है या उसने अपने हित के लिए इसे बढ़ने दिया है। इस समस्या के उभरने में राजनेताओं ने प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष तरीके से मदद कर देश की अखण्डता को तार -तार करने की कोशिश की है।

देश में गुर्जरों के अहिंसक आन्दोलन के बाद उनकी मांगो के पूरा होने के बाद अब दबाव के लिए हर वर्ग हिंसा का सहारा लेने की कोशिश कर रहा है.जलता जम्मू-कश्मीर इसका उदाहरण है. व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं रहने पर जब नेता ख़ुद को सम्पूर्ण भारत के जनता के नेता के रूप में प्रस्तुत नही कर पाते तो अपने स्वार्थों के लिए क्षेत्रीय हितों की बात करना इनकी मजबूरी बन जाती है।

देश इस समय मंहगाई और क्षेत्रीयता की चुनौती का सामना कर रहा है,जो विकास और हमारी एकता की सारी गणित को ही गदाबदाने पर उतारू है.ऐसे में संयम और धैर्य के साथ मिलजुलकर हमें इन चुनौतियों का सामना करना होगा.

सोमवार, 23 जून 2008

उफ़ ये गर्मी (भोपाल से दिल्ली)

एक शहर से दूसरे शहर में जाने पर कई फर्क पड़ते है.सबसे पहला तो वातावरण का ही पङता है.भोपाल से देल्ली आने पर यह फर्क मुझे सिद्दत से महसूस हुआ.जहा भोपाल का मौसम खुशनुमा है.तो देही में सुख-सुविधा की सारी चीजें होने की बावजूद व्यस्तता के कारण कहीं खोई -खोई सी रहती है.सारे देश की समस्याओं को अपने सर लेकर बड़ी जिम्मेदारी से अपना फर्ज निभा रही है।

तो दूसरी और गर्मी से हलाकान है एक मिनट के लिए बिजली गुल हो जाए तो जैसे जीना मुहाल हो जाता है .बहार निकले नही की उमस से से सामना करना पड़ता है.यहाँ इतनी उमस है की पंखे के निचे से हटे नही की लगता है की सीरे की कडाही से निकाले गए हो,चिपचिपी लिजलिजी ये गर्मी ख़ुद पर ही चिढ पैदा कर देती है।

देश के कोने -कोने से आकर लोग यहाँ बसे हैं.जिससे अपनी विशेषताओं केसाथ इसकी संस्कृति बहुरंगी हो गई है.जो भाषा के स्तर पर तो दिखाई ही पड़ती है जीवनशैली के स्तर पर भी दिखाई पड़ती है।

सच कहूं तो सारे देश की विशेषता एक दल्ली में काफी कुछ देखी जा सकती है.लेकिन इसकी गर्मी से तो भगवान् ही बचाए.यहाँ काफ़ी खुलापन दिखायी पड़ता है.देश के मिजाज के साथ दिल्ली भी बदल रही है.

शनिवार, 7 जून 2008

महारास्त्रियों के प्रेम का पाखण्ड

महारास्त्र की गठबंधन सरकार महारास्त्रियों के लिए मरीन ड्राइव के निकट समुद्र में शिवाजी की ३०९ फीट उची प्रतिमा बनाने वाली है.यह सब महारास्त्रियों के लिए कुछ कराने के नाम पर किया जा रहा है जैसे मराठियों के विकास रोजगार गरीबी का काम ख़त्म किया जा चुका हो अब केवल कृत्रिम मूर्तिया बनानी शेष हो।

विडम्बना है की जो महापुरुष जिन चीजो का विरोध करते हैं,उनके अनुयायी उनके सिधान्तो को अंगूठा दिखाकर उनके नाम पर वही काम करते है.जैसे कबीर ने उपासना मे वाह्यआडम्बर का विरोध किया तो अनुयायियों ने उन्ही की मूर्ति लगाकर उनके नाम पर मठ बनाए.शिवाजी ने पर्वत पहाडों को अपना दोस्त माना उन्ही के बीच पले बढे. उनकी रक्षा किचेतना उनके मन में थी तो अनुयायियों ने समुद्र के बीच कृत्रिम द्वीप बनाकर उनकी मूर्ति लगाने की ठान ली ।

वह भी तब-जब विश्व बढ़ते प्राकृतिक असंतुलन को लेकर चिंतित है.विश्व के सामने एक गंभीर समस्या के रूप में ग्लोबल वार्मिंग और बढ़ता प्राकृतिक असंतुलन एक चुनौती बन गया है.ऐसे में इस चुनौती कोठेंगा दिखाकर प्रकृति को नुकसान पहुचाकर ,महारास्त्रियो के लिए कुछ करने का पाखण्ड क्यो ?पर्वत पहाड़ नदी तालाब समुद्र जिस भारतीय,महारास्त्री नायक के अजीज थे उन्ही के नाम पर उनके दोस्तो को नुकसान क्यो पहुचाया जा रहा है?

......और तब जब पहले किए गए इस तरह के प्रयासों को देश की सुरक्षा और पर्यावरण की चिंता से रोका जा चुका है.क्या यह संविधान विरोधी कार्य महारास्त्र वरोधी कार्य नही है.वोट कमाने के बहुत तरीके है.इसके लिए रोजगार बढ़ाने गरीबी उन्मूलन और विकास का कार्य किया जा सकता है.

रविवार, 1 जून 2008

मीडिया वार पर चर्चा

राजधानी भोपाल के स्वराज्य भवन में आज (भोपाल में छिड़ी) मीडिया वारकिसके हित में विषय पर चर्चा हुई । जिसमें भोपाल के सभी प्रमुख पत्रकारों प्रतिनिधियों ने हिस्सेदारी की। इसमे मीडिया के छात्रों ने इनके विचारों को सूना।
इस चर्चा में अभिलाष खांडेकर (भास्कर)दीपक तिवारी (दवीक )एल एन शीतल (राज)पी पी सिंह (प्रमुख,पत्रकारिता बिभाग माखनलाल विश्वविद्यालय )राकेश दिक्सित शिव अनुराग पतेरिया ,विजय दत्त श्रीधर समेत aनेक पत्रकारों ने अपने विचार व्यक्त किए।
जिसमे श्री पी पी सिंह ने कहा इस प्रतिस्पर्धा में पाठको का हित ही है.क्योंकि इससे रीडर तक अपनी पैठ बढ़ने के लिए जो खबर रोक दी जाती थी अब उस तक पहुच सकेगी । लेकिन प्रतिस्पर्धा और युद्ध में अन्तर करना जरूरी है क्योंकि प्रतिस्पर्धा स्वस्थ होती है लेकिन युद्ध में व्यक्तिगत दुर्भावना केन्द्र में आ जाती है.खांडेकर जी नेकहा समय बदल रहा है प्राथमिकताएं बदल रही हैंऐसे में आने वाले बदलाव का स्वागत करना चाहिए .......

क्रमशः