विचार

शनिवार, 7 जून 2008

महारास्त्रियों के प्रेम का पाखण्ड

महारास्त्र की गठबंधन सरकार महारास्त्रियों के लिए मरीन ड्राइव के निकट समुद्र में शिवाजी की ३०९ फीट उची प्रतिमा बनाने वाली है.यह सब महारास्त्रियों के लिए कुछ कराने के नाम पर किया जा रहा है जैसे मराठियों के विकास रोजगार गरीबी का काम ख़त्म किया जा चुका हो अब केवल कृत्रिम मूर्तिया बनानी शेष हो।

विडम्बना है की जो महापुरुष जिन चीजो का विरोध करते हैं,उनके अनुयायी उनके सिधान्तो को अंगूठा दिखाकर उनके नाम पर वही काम करते है.जैसे कबीर ने उपासना मे वाह्यआडम्बर का विरोध किया तो अनुयायियों ने उन्ही की मूर्ति लगाकर उनके नाम पर मठ बनाए.शिवाजी ने पर्वत पहाडों को अपना दोस्त माना उन्ही के बीच पले बढे. उनकी रक्षा किचेतना उनके मन में थी तो अनुयायियों ने समुद्र के बीच कृत्रिम द्वीप बनाकर उनकी मूर्ति लगाने की ठान ली ।

वह भी तब-जब विश्व बढ़ते प्राकृतिक असंतुलन को लेकर चिंतित है.विश्व के सामने एक गंभीर समस्या के रूप में ग्लोबल वार्मिंग और बढ़ता प्राकृतिक असंतुलन एक चुनौती बन गया है.ऐसे में इस चुनौती कोठेंगा दिखाकर प्रकृति को नुकसान पहुचाकर ,महारास्त्रियो के लिए कुछ करने का पाखण्ड क्यो ?पर्वत पहाड़ नदी तालाब समुद्र जिस भारतीय,महारास्त्री नायक के अजीज थे उन्ही के नाम पर उनके दोस्तो को नुकसान क्यो पहुचाया जा रहा है?

......और तब जब पहले किए गए इस तरह के प्रयासों को देश की सुरक्षा और पर्यावरण की चिंता से रोका जा चुका है.क्या यह संविधान विरोधी कार्य महारास्त्र वरोधी कार्य नही है.वोट कमाने के बहुत तरीके है.इसके लिए रोजगार बढ़ाने गरीबी उन्मूलन और विकास का कार्य किया जा सकता है.

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

hai sakha
nihsandeh aapka chintan sarthak hai. magr ye bhi to unka ek endaj-e-ijhaar ho sakta hai.
magr apka chintak umda hai
dhnyavaad jaari rakhein