विचार

शनिवार, 27 अप्रैल 2019

नारे : मौत के सौदागर से चौकीदार चोर है तक


कोई आंदोलन हो चुनाव , अपने समर्थकों को प्रोत्साहित करने उन्हें एकजूट रखने और प्रतिद्वंद्वयो को पस्त करने व उनके समर्थकों को अपने पक्ष में लाने में अहम भूमिका होती है। आधुनिक दौर की बात करें तो कई नारों का दांव पलट गयया। ऐसा ही चर्चित नारा था मौत का सौदागर गोधरा कांड की छाया में गुजरात में हुए साम्प्रदायिक दंगों के चलते तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष ने उस समय के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए ये कहा था, जिसे उन्होंने गुजराती गर्व पर हमला की बात समझा कर बड़ी जीत हासिल की। यह क्षमता ही नरेंद्र मोदी को आज के राजनीतिज्ञों से आगे लाकर खड़ा कर देती है। इसके लिए उन्होंने विश्वसनीयता अर्जित की है। एक वक्त राजग की ओर से दिया गया इंडिया शाइनिंदग का नारा भी लोगों की समझ में नहीं आया था और नैरा देने वाले दल को हार का सामना करना पड़ा। इस लोकसभा चुनाव में भी एक नारे की परीक्षा होनी है 【चौकीदार चोर है】। कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री पर हमले के लिए खास तौर पर इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। इसकी काट के लिए बीजेपी की ओर से मैं भी चौकीदार हूँ नारे से जवाब दिया जा रहा है इसमें एक पेशे की कांग्रेस की ओर से तौहीन किये जाने के तौर पर दिखाया जा रहा है। इसमे कोशिश है कि चौकीदारी करने वाले लोंगो को अपने पक्ष में उनके गर्व को भुनाना है। इससे पहले चौकीदार चोर का नारा मोदी के चौकीदार बताकर ईमानदारई दिखाने की कोशिश थी, जिसका एक सिरा पिछली यूपीए सरकार तक जाता है जो भ्रष्टाचार को लेकर बदनाम हो गई थी, इसी की काट के लिए कांग्रेस की ओर से नारा दिया गया था। अब देखना है कि किसकी बात लोगो को समझ मे आती है। इस पर संभव है शोध हो कौन सा नैरा असफल हुआ और क्यों।

आधे देश में मोदी के इर्द गिर्द लड़ा जा रहा है चुनाव


देश नई लोकसभा का गठन करने की ओर धीरे धीरे आगे बढ़ रहा है। तीन चरण का मतदान हो चुका है चौथे चरण में लोग २९ अप्रैल को अपने सांसद के लिए वोट करेंगे पर माफ कीजिएगा इस चुनाव में ऐसा होता नहीं दिख रहा है। देखने में यह आ रहा है पूर चुनाव एक व्यक्ति के इर्द गिर्द लड़ा जा रहा है मोदी। पूर्व से पश्चिम और उत्तर के राज्यो में यही हाल है। या तो लोग मोदी के पक्ष में हैं या विरोध में। मैं इसे राजनीतिक ध्रुवीकरण कहूँगा, जब से होश संभाला है पहले कभी नहीं देखा। 2014 में भी इतना जबरदस्त बिभाजन समाज में नहीं था। हालांकि इसमें भी उम्मीद कि किरण यह है कि इसमें भी जाति और धर्म की दीवारें दरकी हैं यहां तक कि घरों में भी और पीढ़ीगत बिभाजन सामने आया है हाल यह है एक ही परिवार के वोट अगर दो तरह से मोदी के पक्ष और विरोध में पड़ जाय तो आश्चर्य नही होना चाहिए । पश्चिम यूपी में ऐसा नज़र आया है कि एक ही परिवार में बुजुर्गों ने गठबंधन का साथ दिया पर बच्चों ने गुरिल्ला पद्धति से कमल खिला दिया। बिभिन्न जातीय और धार्मिक समूहों ने भी ऐसा किया कुल मिलाकर जाति के नाम पर वोटिंग का रोग भी कमजोर हुआ है। भविष्य में हो सकता है संचार के विद्वान या कोई और इस पर शोध करे कि भारत जैसे विविधता वाले देश में ये कैसे संभव हुआ पर फिलहाल ऐसा है और दोनों तरह के लोगों की तादाद अच्छी खासी है और मुकाबला दिलचस्प। इसको एक रेखीय अध्यक्षात्मक प्रणाली अपनाने जैसा है। एक रेखीय इसलिये कह रहा हूँ कि भारत में संसदीय शासन प्रणाली है जहां हैम सांसद चुनते है और वो प्रधानमंत्री और अध्यक्षात्मक प्रणाली में लोग सीधे प्रधानमंत्री राष्ट्रपति चुनते हैं बाकी चीजें ये चुनते हैं । भारत मे अनौपचारिक रूप से लोग के प्रधानमंत्री चुनने का पैटर्न दिखा रहे हैं मोदी के पक्ष वाले, विरोधियों में चूंकि ऐसा नहीं है मोदी विरोधी दल और सांसद प्रत्याशी भी देख रहे हैं इसलिए मैंने एक रेखीय कहा।हाल यह है कि मोदी के पक्ष वालों को जो भाजपा को वोट देकर आये हैं या देनेवाले हैं अपने उम्मीदवार का नाम न बताएं तो ताज्जुब नही होना चाहिए। कुल मिलाकर यहां पार्टी और संगठन भी गौण नज़र आ रहे हैं। इसे लहर नहीं कहें तो और क्या कहें। हालांकि मोदी को शिकस्त देने के इच्छुक लोग भी उतने ही एकजुट हैं। इस तरह कुर्सी का फैसला अब संख्या पर निर्भर करेगी और दूसरे हितग्राही समूहों पर हालांकि इनकी भी संख्या एक, दस पचास सौ नही हजारो और लाखों में हैं जिनके अपने अपने हित है और उसी के हिसाब की सरकार लाने की कोशिश करेंगे। इसमें उस वर्ग को नुकसान हो सकता है जो मतदान के दिन आंकलन में जुट रहे और बूथ पर मतदान से दूर रहे। ये हाल मीडिया जैसे पेशे में भी मिल जाएंगे कुछ तो इतने विरोधी हैं कि केंद्र सरकार कोई भी काम कर दे वो मोदी की कोई। नकोई कमी निकाल लेंगे कुछ इतने बड़े समर्थक बन गए हैं कि वो कल्पना नहीं कर सकते कि मोदी या उनके नेतृत्व वाली सरकार कुछ ग़लत कर सकती है चुनाव में ये दोनों ही पक्ष मुखर हैं और उन्होंने फिक्स कर लिया है अब दल प्रचार भी न करें तो ये वोट ऐसे ही पड़ने हैं। अब इसमें सबसे बड़ी फजीहत सर्वे वालों कि है अगर किस्मत sahi nahi रही और सैम्पल लेते वक्त निरपेक्ष वोटर नही मिले तो सारा आंकलन गड़बड़ा देंगे। २०१४ में एक तरह की सत्ता विरोधी लहर थी और एक प्रदेश के मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री बनने के लिए उसके दिखाए सपनों पर लोग प्रधानमंत्री बनाने को तैयार थे पर मीडिया इसके लिए तैयार न था कोई भी मीडिया भाजपा नीत एंडी ए की सर्वे में पूर्ण बहुमत देने को तैयार न था हालांकि नतीजे के बाद मोदी लहर कहीं गई। अब बात करें इधर कुछ दिनों के हाल की तो राजनीतिक दलों ने जैसे मोदी के पक्ष और विरोध को स्वीकृति दे दी है। अख़बार का कोई भी पन्ना उठा लीजिए किसी विरोधी दल का नेता ये नही कहता दिखाई देता की हमारी ये नीति है जो अच्छी आपके लिए हितकारी है इसलिए चुनो या उनकी ये नीति खराब है इसलिए मत चुनो। मोदी के विरोध वाले उनकी पार्टी से ज्यादा नाम मोदी का लेते हैं और मोदी को हटाने के लिए वोट मांग रहे हैं और पक्ष वाले मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए। परसों एक चाय की दुकान पर नोएडा में एक अधेड़ को देखा बड़बोले से लगे तो कुरेद दिया। चुनाव का क्या हाल है तो भरे बैठे थे कहने लगे इस उम्र में काम करना पड़ रहा है मोदी के कारण उसे वोट नहीं दूंगा। ये कपड़े लट्टे से निम्न आय वर्ग के लगते थे। वैसे एक टैक्सी चालक से टकरा गया अकेले मैं ही था तो पूछ बैठा कहाँ रहते हो तो बताया नोएडा। अगला सवाल किया चुनाव का क्या रहा तो उन्होंने बताया कि मोदी को वोट दिया जबकि उनके यहां से भाजपा प्रत्याशी डॉक्टर महेश गिरी थे और मंत्री भी थे। अगले दिन पिथौरागढ़ के टैक्सी चालक से मिला वो दिल्ली में ही काम करते हैं काफी परेशान भी थे फिर भी चुनाव का पूछ बैठा तो उन्होंने अपने वोट के साथ प्रदेश की 5 सीट मोदी को देने का दावा कर दिया। इसी तरह शुक्रवार को ई रिक्शा एक जगह जा रहा था तो चालक को छेड़ दिया वो दिल्ली में रहते हैं। बस उसने मोदी के पक्ष में राय जाहिर कर दी मैंने और कुरेदा तो उन्होंने मोदी की अच्छी बात बताने के लिए काम से कम एक घंटे की मांग रख दी। हालांकि स्टेट चुनाव में आप को वोट देने की भी बात कही। मैंने कहा मैं तो आज समय दे सकता हूँ कुछ चीज़ें उन्होंने बताई भी पर हमारे चर्चा से एक अधेड़ बिफर पड़े वो शायद कर्मचारी थे। वो मोदी से नाराजगी जताने लगे और आप की बात रखी,मेट्रो तक वो मुझे मुतमईन करने की कोशिश करते दिखे और मोदी से नाराजगी का इज़हार। इतना जबरदस्त मोदी के प्रति गंभीर गुस्सा सामान्य बातचीत में विरोधी पक्ष के नेता को लेकर मैंने देखा नहीं था अब तक। कुल मिलाकर दक्षिण को छोड़ दें तो हर सीट पर मोदी ही लड़ रहे हैं चाहे पक्ष हो या विपक्ष।