विचार

बुधवार, 8 मार्च 2023

तब के जयचंद अब के जयचंद


एक जयचंद मध्यकाल में हुआ जिसने पृथ्वीराज के खिलाफ विदेशी आक्रांता से मदद मांगी, दिल्ली पर हमले का न्योता दिया था...उसके बालमन को  ऐसा लगा था की आक्रांता दिल्ली जीतकर उसकी झोली में डाल देगा लेकिन हुआ उल्टा, होना भी यही था...


आक्रांता के एंगल से सोचें तो उसका दोष नहीं लगता उसने तो वही करना था... न तबकी दिल्ली रही न जयचंद... खैर फिर दिल्ली सम्भली...जनता ने अत्याचार सहे उसने सबक सीख लिया जयचंद का कोई नामलेवा नहीं है.. लेकिन जयचंद की सोच खत्म नहीं हुई..कोई नहीं चाहता उसके बीच जयचंद रहे... लेकिन जयचंद की सोच भी नहीं मरती... जैसे नहीं मरी राणा प्रताप और पृथ्वीराज की..


अब भी जयचंद की सोच अंगड़ाई लेती रहती है... हारती है उठकर खड़ी होती है फिर... लेकिन तब तक संघर्ष चलता ही रहेगा जब तक जनता ही इस सोच के खिलाफ न उठ खड़ी हो...


अब समय समय पर ऐसी सोच दिखेगी.. अब राजतन्त्र नहीं है जनता मालिक है.. आज का अभिजात्य कहता भी है लेकिन इसको जीवन में उतारना नहीं चाहता.. अगर जनता मालिक है और जनता ही अपना मुकद्दर या प्रतिनिधि चुन सकती है तो यह मांग जनता से ही होनी चाहिए उसे अपने पक्ष में कंविन्स करना चाहिए न की किसी और ताकत से...


 अगर लगता है की जनता ने जिसे चुना उससे बेहतर आप डिलीवर कर सकते हैं तो आपको यह बात भारत की जनता से कहनी चाहिए अन्यथा यह जनता का अपमान है और वह ऐसे बातों को बौद्धिक समझना छोड़ भी दी है जितनी जल्दी समझ जाएं उतना अच्छा .. न कि यह मांग आप किसी और ताकत से करें और ऐसा आप कर रहे हैं तो दो चीज पक्का कर रहे हैं.. एक आप अयोग्य हैं जनता को कंविन्स नहीं कर पा रहे हैं दूसरा आप को न जनता पर भरोसा है और न लोकतंत्र पर, जनता को लेकर आप छिपी सोच रखते हैं और खुद को कुछ और समझते हैं आप रिगिंग पर भरोसा रखते हैं मानते हैं कि आप के अलावा कोई शासन नहीं कर सकता और न चुन सकता है तभी तो यह मसला भारत से बाहर उठाया जा रहा है.. पुराना जयचंद भी तो यही कह रहा था.. इसीलिए तो विदेशी को न्योता दिया था कि वो आए पृथ्वीराज को हराए ताकि दिल्ली उसे मिल जाय


अब फिर यह सोच सिर उठा रही है...इससे पहले जनता का और पूर्वजों का अपमान (क्योंकि भारत में पढ़े और बिना पढ़े लोगों की सोच को बराबर मानकर ही मतदान चुनाव का अधिकार दिया गया था ) कांग्रेस नेता मणि शंकर अय्यर ने तब किया था जब उन्होंने पाकिस्तान के दुनिया टीवी से कहा था कि पाकिस्तान को भारत से बायलेटरल टॉक करनी है तो उसे पहले नरेन्द्र मोदी सरकार को हटाना होगा और हमें (कांग्रेस )   को लाना होगा. मोदी को हटाए बिना पाकिस्तान से बायलेटरल टॉक मुमकिन नहीं.


अब इसी तरह की बात कांग्रेस के सबसे बड़े नेता ने कैम्बरीज यूनिवर्सिटी में कही है और सबको चाहिए दिल्ली लेकिन जनता नहीं बाहरी ताकत से...

अब कांग्रेस नेता ने भारत में यूएस यूरोप से दखल की मांग की. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने लंदन में इंडियन जर्नालिस्ट एसोसिएशन के कार्यक्रम में कहा कि भारत में लोकतंत्र समाप्त हो रहा है. यूरोप और अमेरिका लोकतंत्र के चैंपियन बनते हैं और भारत में लोकतंत्र खत्म हो रहा है और ये चुपचाप बैठे हैं... माध्यकाल के जयचंद की भी तो ऐसी ही मासूम चाह थी अब देखना है बाहरी ताकतें जनता की सुनती हैं या एक राजवंश के राजकुमार या जनता के ठुकराए सेनापति की और जनता कैसी प्रतिक्रिया देगी.






बुधवार, 1 मार्च 2023

भारत में गहरे तक लोगों में धंसी है सामंती सोच

देश को आज़ाद हुए अरसा हो गया. हमने काफ़ी बुराइयों के खिलाफ प्रगति भी की है लेकिन सामंती सोच को बदलने के लिए न  कोई प्रयास किया गया और न ही ध्यान दिया गया. हाल यह है कि यह समाज में गहरी धंसी हुई है और लोगों को मालूम भी नहीं चलता और स्वीकृति भी दे बैठे हैं. राजा के दैवीय सिद्धांत और विशेष अधिकारों को प्रोत्साहित करता नज़र आता है. यह कहती है कि कुछ लोगों को नियमों से इतर लाभ मिले. हालांकि यहां राजा की जगह देश के अभिजात्य ने ले लिया है. खैर यह पुराने रूप में देखेंगे तो नहीं मिलेगा. यह हाल में एक के बाद एक घटनाओं से देखा जा रहा है.



अभी हाल में अभद्र टिप्पणी के मामले में कांग्रेस नेता पवन खेड़ा मामले में ऐसा ही मुज़ाहिरा हुआ. इनके खिलाफ पीएम मोदी पर अभद्र टिप्पणी मामले में असम में केस दर्ज हुआ है, ये रायपुर अधिवेशन में जा रहे थे तभी दिल्ली पुलिस ने इन्हें असम पुलिस के आग्रह पर रोक लिया इस पर खूब बखेड़ा हुआ, इन्हें कुछ घंटों में सीधे सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई, kya एक आम आदमी के इसी तरह के मामले को बिना निचली कोर्ट जाए सुप्रीम कोर्ट आनन फ़ानन में सुन लेता. हालांकि ये मानते हैं कोर्ट को कंविन्स करने के लिए गंभीर मानवीय मूल्य पर खतरा जैसा पेश किया गया होगा.. फिर भी.. फिर तो न्याय की देवी को आंख पर बंधी पट्टी खोल देना चाहिए.


और भी ऐसे मामले हैं जैसे कुछ मीडिया संस्थानों के दफ़्तर में हाल में आईटी सर्वे पर खूब बखेड़ा हुआ, इसे मीडिया पर हमला कहा जाने लगा. इससे पहले कांग्रेस लीडर सोनिया गांधी और राहुल गांधी से ईडी पूछताछ मामले में भी यह दिखा था तब इस घटना के खिलाफ खूब प्रदर्शन हुए थे. ऐसे अनगिनत मामले हैं.यह उसी सोच का नतीजा है कि राजा तो कोई गलती कर ही नहीं सकता या उस पर कोई सवाल ही नहीं हो सकता.


समाज में भी ये आम है कि अमुक ने मुझे ऐसे कैसे कहा, ये तो उसका काम है, वीआईपी कल्चर और लोगों का उसे स्वीकृति देना सब अलग अलग रूप में सामंती सोच का ही परिणाम है.


अक्सर इस पर ये दलील दी जाती है कि छापा उन पर क्यों मारा या जांच के बाद तो कुछ नहीं मिला तो ये नहीं समझ में आता कि जांच ही नहीं की जाएगी तो ये कैसे पता चलेगा कि सब ठीक है. और आपने एजेंसी किसी जांच के लिए बनाई है और वह जांच कर रही है तो उसके लिए उसे अप्रैसिएट किया जाना चाहिए न कि उसकी लानत मलानत करनी चाहिए कि शुक्र है कि उसने अपना काम तो किया. वार्ना उसके मनोबल पर असर पड़ेगा और विशेष लोगों की जांच होनी नहीं चाहिए तो फिर तो एजेंसी ही नहीं बनानी चाहिए. हां ये मांग तो की जानी चाहिए कि एजेंसी के लिए जो प्रोटोकॉल है वह उसे फॉलो करे और आंख पर पट्टी बांधकर सबके लिए एक समान क्या आम क्या खास.. इसमें टाइमिंग का सवाल भी समझ में नहीं आता क्योंकि क्या एजेंसी से भी मुहूर्त देखकर कुछ काम करवाना है क्योंकि तब तो उसे खास समय का इंतजार कराना होगा.