विचार

बुधवार, 1 मार्च 2023

भारत में गहरे तक लोगों में धंसी है सामंती सोच

देश को आज़ाद हुए अरसा हो गया. हमने काफ़ी बुराइयों के खिलाफ प्रगति भी की है लेकिन सामंती सोच को बदलने के लिए न  कोई प्रयास किया गया और न ही ध्यान दिया गया. हाल यह है कि यह समाज में गहरी धंसी हुई है और लोगों को मालूम भी नहीं चलता और स्वीकृति भी दे बैठे हैं. राजा के दैवीय सिद्धांत और विशेष अधिकारों को प्रोत्साहित करता नज़र आता है. यह कहती है कि कुछ लोगों को नियमों से इतर लाभ मिले. हालांकि यहां राजा की जगह देश के अभिजात्य ने ले लिया है. खैर यह पुराने रूप में देखेंगे तो नहीं मिलेगा. यह हाल में एक के बाद एक घटनाओं से देखा जा रहा है.



अभी हाल में अभद्र टिप्पणी के मामले में कांग्रेस नेता पवन खेड़ा मामले में ऐसा ही मुज़ाहिरा हुआ. इनके खिलाफ पीएम मोदी पर अभद्र टिप्पणी मामले में असम में केस दर्ज हुआ है, ये रायपुर अधिवेशन में जा रहे थे तभी दिल्ली पुलिस ने इन्हें असम पुलिस के आग्रह पर रोक लिया इस पर खूब बखेड़ा हुआ, इन्हें कुछ घंटों में सीधे सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई, kya एक आम आदमी के इसी तरह के मामले को बिना निचली कोर्ट जाए सुप्रीम कोर्ट आनन फ़ानन में सुन लेता. हालांकि ये मानते हैं कोर्ट को कंविन्स करने के लिए गंभीर मानवीय मूल्य पर खतरा जैसा पेश किया गया होगा.. फिर भी.. फिर तो न्याय की देवी को आंख पर बंधी पट्टी खोल देना चाहिए.


और भी ऐसे मामले हैं जैसे कुछ मीडिया संस्थानों के दफ़्तर में हाल में आईटी सर्वे पर खूब बखेड़ा हुआ, इसे मीडिया पर हमला कहा जाने लगा. इससे पहले कांग्रेस लीडर सोनिया गांधी और राहुल गांधी से ईडी पूछताछ मामले में भी यह दिखा था तब इस घटना के खिलाफ खूब प्रदर्शन हुए थे. ऐसे अनगिनत मामले हैं.यह उसी सोच का नतीजा है कि राजा तो कोई गलती कर ही नहीं सकता या उस पर कोई सवाल ही नहीं हो सकता.


समाज में भी ये आम है कि अमुक ने मुझे ऐसे कैसे कहा, ये तो उसका काम है, वीआईपी कल्चर और लोगों का उसे स्वीकृति देना सब अलग अलग रूप में सामंती सोच का ही परिणाम है.


अक्सर इस पर ये दलील दी जाती है कि छापा उन पर क्यों मारा या जांच के बाद तो कुछ नहीं मिला तो ये नहीं समझ में आता कि जांच ही नहीं की जाएगी तो ये कैसे पता चलेगा कि सब ठीक है. और आपने एजेंसी किसी जांच के लिए बनाई है और वह जांच कर रही है तो उसके लिए उसे अप्रैसिएट किया जाना चाहिए न कि उसकी लानत मलानत करनी चाहिए कि शुक्र है कि उसने अपना काम तो किया. वार्ना उसके मनोबल पर असर पड़ेगा और विशेष लोगों की जांच होनी नहीं चाहिए तो फिर तो एजेंसी ही नहीं बनानी चाहिए. हां ये मांग तो की जानी चाहिए कि एजेंसी के लिए जो प्रोटोकॉल है वह उसे फॉलो करे और आंख पर पट्टी बांधकर सबके लिए एक समान क्या आम क्या खास.. इसमें टाइमिंग का सवाल भी समझ में नहीं आता क्योंकि क्या एजेंसी से भी मुहूर्त देखकर कुछ काम करवाना है क्योंकि तब तो उसे खास समय का इंतजार कराना होगा.




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