विचार

गुरुवार, 31 मई 2018

भारतीय राजनीति में बेवजह के विवाद

लग रहा है विवाद करना भारतीय राजनताओं का शगल बन गया है। ताजा विवाद पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की ओर से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नागपुर कार्यालय में होने वाले कार्यक्रम में स्वयंसेवकों को संबोधित करने का न्योता स्वीकार करने का है। इसको लेकर कांग्रेस के सांसद संदीप दीक्षित ने सवाल उठाए हैं और आलोचना की है। उनका कहना है कि ये उनकी पार्टी की विचारधारा के करीब नहीं है इसलिये पूर्व राष्ट्रपति को वहां नहीं जाना चाहिए। क्या ये देश के उन राष्ट्रपति महोदय की सोच का विस्तार नहीं है जिन्होंने खुद को प्रधानमंत्री का सफाई कामगार तक बता दिया था। कांग्रेस ने स्पष्ट तो कुछ नहीं कहा मगर दीक्षित के बयान को खारिज भी नहीं किया।
ये एक तरह से पूर्व राष्ट्रपति के अभिव्यक्ति की आज़ादी पर अंकुश लगाने की कोशिश भी है। यह हाल तब है जब देश में जब तब अभिव्यक्ति की आज़ादी का रोना रोया जाने लगता है और हस्ताक्षर अभियान चलाए जाने लगते हैं और हस्ताक्षर करने वालों में ये कुछ लोग कॉमन होते हैं।
ये हाल तब है जब हम पाकिस्तान से बात करने के लिये तैयार रहते हैं जबकि वो हमें कितने जख्म देता है। पिछले दिनों पूर्व कांग्रेस नेता मणि शंकर अय्यर के घर पाकिस्तान के शायद पूर्व अफसर के साथ गुफ़्तगू ने खूब सुर्खियां बटोरी थी। अभी पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के पूर्व चीफ दुर्रानी और रा के पूर्व चीफ दुलत की किताब के विमोचन में कांग्रेस नेता पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तक शामिल हुए थे। जो चीज हम अपने लिए चाहते हैं वो दूसरों को क्यों नहीं मिलना चाहिए। अलगाववादियों से भी बात करने के लिये होते हैं फिर आरएसएस से जुड़े लोगों से बात न करना एक तरह की असहिष्णुता ही है।
एक बात और कि अगर आरएसएस के किसी भी विचार से आपको इख़्तिलाफ़ है तो उससे बात कर ही प्रभावित कर सकते हैं। फिर जब देश के करोड़ों लोग जिस संगठन से प्रभावित हों या जुड़ें हों उससे

मंगलवार, 29 मई 2018

चुनाव में हार का डर औऱ ईवीएम पर हायतौबा

देश में हर चुनाव में सबसे ज्यादा निशाना ईवीएम आजकल बनाई जा रही है। आमतौर पर चुनाव के बाद अपनी हार की वजह छिपाने के लिए हमारे यहां उसको बलि का बकरा बनाया जाता है। और कई बार पहले से ही इस बात की गुंजाइश रखी जाती है कि जनता द्वारा दरकिनार किये जाने पर ईवीएम को दोषी क़रार दिया जाय।हालाँकि कोई राजनीतिक दल या इस मेधावी देश का एक भी मेधावी इस पर अपने खयाली पुलाव को सिद्ध नहीं कर सका है।।जबकि पिछले चुनाव में ऐसी ही आवाज उठने पर चुनाव आयोग ने गड़बड़ी सिद्ध करने की चुनौती भी दी तंगी।
28 मई 2018 को देश भर में हुए उपचुनावों में खासकर कैराना उप चुनाव जहाँ विपक्ष और सत्ता पक्ष दोनों की इज़्ज़त दांव पर लगी है। इस चुनाव में मतदान से पहले  ईवीएम में जुड़ने वाली एक और मशीन जिसे वीवीपैट कहा जाता है जो मतदाता  को इलेक्ट्रॉनिक रशीद देती है कि  मतदाता ने किसे वोट दिया में कुछ खराबी पाई गईं।संभवतः मशीन चली नहीं इससे मतदान में कुछ देरी हुई मगर राजनीतिक दल ऐसे प्रचारित कर रहे हैं जैसे ईवीएम खराब थी।जबकि वीवीपैट को कुछ देर में बदल दिया गया होगा।
वहीं राजनीतिक दलों खासकर विपक्ष को बैलेट पेपर पर बहुत भरोसा जग रहा है और विपक्ष ऐसा प्रचारित करता है कि जनता को ईवीएम पर भरोसा नहीं है। हालांकि बैलेट पेपर से मतदान लोकतंत्र के लिए ज्यादा अहितकर है। खासतौर से जब हम सुधार का एकचरण पर कर चुके हैं तो दरकिनार कर दिए गए लोगों की चालबाजियों के चक्कर में हमें अपनी चुनाव प्रारणी में अतार्किक छेड़छाड़ नहीं करना चाहिए।
हालांकि जनता को ईवीएम की खासियत जरूर बतानी चाहिए ताकि वो किसी चालबाजी में न फंसे। फिलहाल बैलेट पेपर से चुनाव में कुछ दिक्कतें हैं। पहला की इससे मतदान में बड़ी संख्या में वोट अमान्य हो जाते हैं क्योंकि अशिक्षित लोग सही से मोहर नहीं लगा पाते।स्याही इधर से उधर लगने या फैल जाने पर ये दिक्कत आएगी।
वहीं इससे वोट में कर्मचारियों पर निर्भरता बढ़ेगी क्योंकि कई बार अष्पष्ट स्याही लगने पर मतगणना कर्मी तय करेगा कि वोट सही है या नहीं अपने विवेक से और देश में डंडे के जोर से ही निष्पक्षता आती है जैसा चुनाव आयोग की कार्यवाही का डर।साथ ही हमारे यहां अशिक्षित लोगों का प्रतिशत काफी है।
वहीं बैलेट पेपर से मतदान और मतगणना में समय ज्यादा लगेगा और ज्यादा समय मतगणना में ज्यादा गड़बड़ी के मौके देगा।फिर बैलेट पेपर के दौर में तमाम बूथों पर बूथ कैप्चरिंग , चुनाव को प्रभावित करने के लिए बैलेट बॉक्स में पानी डालकर दोबारा चुनाव कराने के हथकंडे अपनाने के ये आरोप ईवीएम पर सवाल उठाने वाले विपक्षी दलों के तमाम स्थानीय नेताओं पर लगते रहे हैं। और आपमेंसे कई इसके गवाह होंगे या इसके किस्से सुने होंगे।ऐसे में दरअसल ईवीएम पर सवाल इनकी नीयत पर सवाल है।
मगर चिंताजनक है कि कैराना चुनाव में सत्तारूढ़ दल के लोगों की ओर से भी सवाल उठाए गए हैं हालांकि उनकी ओर से कर्मचारियों पर सवाल उठाए गए हैं मगर खबरों में इस तरह से प्रकाशित किया गया है जैसे उन्होंने भी ईवीएम पर सवाल उठाए हैं जबकि विपक्षी दल भी वीवीपैट की बात कर रहे हैं जो एक अलग मशीनहै।
इसके अलावा मतदान से पहले हर बूथ पर सभी प्रत्याशी के एजेंट की मौजूदगी में मॉक पोलिंग होती है और एजेंट के ओके करने पर मतदान शुरू होता है। ऐसे में गड़बड़ी होने पर पता चल जाएगा। इसलिये स्वार्थ की ख़ातिर संवैधानिक संस्थाओं पर सवाल ठीक नहीं।


रविवार, 27 मई 2018

कहाँ जा रहे हैं हम एक समाज के रूप में

भारत देश विकास के आधुनिक मानकों पर तेजी से बढ़ रहा है, मगर भागदौड़ के बीच हम कुछ खोते भी जा रहे हैं और वो है मूल्य। भारतीय संस्कृति की जो ताकत है वही हम खो रहे हैं। मैं ये सब फिलहाल बहुत ही मामूली परिप्रेक्ष्य में बात करूंगा।
आज से कुछ अरसे पहले हमारे यहां समाज का बड़ा असर था लोग दूसरों के सुख दुख से प्रभावित होते थे और अपने स्तर पर अच्छा और मदद की कोशिश करते थे नतीजतन तमाम धर्मशाला स्कूल आज भी दिखाई देंगे जो लाभ के मद्देनजर नहीं बनाए गए मगर आज ये स्थिति नहीं है।
आज स्वार्थपरता चरम पर है और सब अपने और लाभ के लिये हो रहा है। ज्यादातर लालची ढोंगी और पाखंडी हैं और यह धर्म जाति की सीमा को तोड़कर एक तरह से है। लोगों के पास इतने मुखौटे हैं कि किसी व्यक्ति का असली स्वरूप क्या है कहना मुशकिल है। हाल यह है कि कानून तोड़ना लोगों को रोमांच दिलाता है, हालांकि खुद पीड़ित होने पर यही लोग, कानून न्याय समाज की दुहाई भी देते हैं।
 50 साठ साल पहले देश में इतने धनाढ्य लोग कम रहे होंगे मगर सामाजिक कार्य ज्यादा दिखाई देंगे अब करोड़पतियों की लंबी सूची है और हर कंपनी के लिए लाभ का एक हिस्सा सोसल रिस्पांसिबिलिटी के लिए खर्च का नियम है मगर कोई खर्च करता दिखाई नहीं देता और उल्टा गरीबों के हिस्से का धन लोन के रूप में चुराकर भागने का चलन बढ़ गया है।
 फ़िलहाल मैं इसको जिस बात से जोड़ना चाहता हूं। वो यह है देश में शिक्षा के अधिकार कानून के तहत निजी स्कूलों में गरीब तबके के लिए संभवतः 25 %सीट आरक्षित हैं मगर एक भी स्कूल गरीबों को दाखिला देने को तैयार नहीं दिखते। सख्ती पर गुरुग्राम जिले में इडब्लयूएस में किसी तरह दाखिला दिया मगर अभी भी सैकड़ो बच्चों को टरकाया जा रहा है। किसी को स्कूल के स्तर से कमतर बताया जा रहा है तो किसी पर और कुछ आपत्ति लगाई जा रही है।इधर शनिवार को cbse 12th के परीक्षा परिणाम जारी किए गए तो पुष्पा नाम की छात्रा ने 77% अंक पाये उसको ईडब्ल्यू एस में ही दाखिला मिला था और उसने कालेज का नाम रोशन किया। इससे स्तर की आपत्ति तो सवाल के घेरे में है।ऐसी और भी कहानियां होंगी।
एक और बात मैं एक वीडियो देख रहा था।इसमें सरकारी स्कूल की बच्चियां गीत के माध्यम से गर्भ में बालिका हत्या की समस्या को उठाती हैं और समाज को सोचने को मजबूर करती हैं। इससे पता चलता है कि प्रतिभा संसाधनों की मोहताज नहीं है जरूरत है उसे तराशने की और अपनी जिम्मेदारी निभाने की और इंसान बनने की।

शनिवार, 19 मई 2018

कर्नाटक का नाटक

कर्नाटक का सियासी ड्रामा अपने आखिरी दौर में है। इससे पहले चुनाव प्रचार और उसके पहले जो हुआ शर्मनाक था तो अब जो हो रहा है वह भी खतरनाक है। लोकतंत्र के चोर दरवाजों का जमकर इस्तेमाल हो रहा है। हालांकि समय का फेर तो देखिए कुछ लोगों को उम्मीद नहीं रही होगी कि ऐसा भी समय आ सकता है कि उनके बनाये गलियारे का कोई और इस्तेमाल करेगा और उन्हें न्याय का राग अलापना पड़ेगा। फ़िलहाल आम लोग एक बार फिर सत्ता के लिये हर तरह की अनीति देखने के लिए विवश है।
 फ़िलहाल चलते हैं 2018 के परिणाम पर आम जनता बीजेपी को 104, कांग्रेस को 78, निर्दलीयों को 2, जनता दल एस गठबंधन को 38 सीट दीं। मतलब जता दिया किसी से ज्यादा खुश नहीं है, मगर जैसे हर कर्म का फल भुगतना पड़ता है वैसे जनता के इस निर्णय का फल तो उसे भुगतना था मगर इतनी जल्दी होगा पता नहीं था। अपनी लोकतांत्रिक व्यवस्था की खामियां इस क़दर उजागर होगा पता नहीं था। पहले जिसके खिलाफ जनादेश मांगा अब गठबंधन,  फिर राज्यपाल के फैसले औऱ इतिहास का दोहराया जाना सब पर सवाल है।