विचार

रविवार, 27 मई 2018

कहाँ जा रहे हैं हम एक समाज के रूप में

भारत देश विकास के आधुनिक मानकों पर तेजी से बढ़ रहा है, मगर भागदौड़ के बीच हम कुछ खोते भी जा रहे हैं और वो है मूल्य। भारतीय संस्कृति की जो ताकत है वही हम खो रहे हैं। मैं ये सब फिलहाल बहुत ही मामूली परिप्रेक्ष्य में बात करूंगा।
आज से कुछ अरसे पहले हमारे यहां समाज का बड़ा असर था लोग दूसरों के सुख दुख से प्रभावित होते थे और अपने स्तर पर अच्छा और मदद की कोशिश करते थे नतीजतन तमाम धर्मशाला स्कूल आज भी दिखाई देंगे जो लाभ के मद्देनजर नहीं बनाए गए मगर आज ये स्थिति नहीं है।
आज स्वार्थपरता चरम पर है और सब अपने और लाभ के लिये हो रहा है। ज्यादातर लालची ढोंगी और पाखंडी हैं और यह धर्म जाति की सीमा को तोड़कर एक तरह से है। लोगों के पास इतने मुखौटे हैं कि किसी व्यक्ति का असली स्वरूप क्या है कहना मुशकिल है। हाल यह है कि कानून तोड़ना लोगों को रोमांच दिलाता है, हालांकि खुद पीड़ित होने पर यही लोग, कानून न्याय समाज की दुहाई भी देते हैं।
 50 साठ साल पहले देश में इतने धनाढ्य लोग कम रहे होंगे मगर सामाजिक कार्य ज्यादा दिखाई देंगे अब करोड़पतियों की लंबी सूची है और हर कंपनी के लिए लाभ का एक हिस्सा सोसल रिस्पांसिबिलिटी के लिए खर्च का नियम है मगर कोई खर्च करता दिखाई नहीं देता और उल्टा गरीबों के हिस्से का धन लोन के रूप में चुराकर भागने का चलन बढ़ गया है।
 फ़िलहाल मैं इसको जिस बात से जोड़ना चाहता हूं। वो यह है देश में शिक्षा के अधिकार कानून के तहत निजी स्कूलों में गरीब तबके के लिए संभवतः 25 %सीट आरक्षित हैं मगर एक भी स्कूल गरीबों को दाखिला देने को तैयार नहीं दिखते। सख्ती पर गुरुग्राम जिले में इडब्लयूएस में किसी तरह दाखिला दिया मगर अभी भी सैकड़ो बच्चों को टरकाया जा रहा है। किसी को स्कूल के स्तर से कमतर बताया जा रहा है तो किसी पर और कुछ आपत्ति लगाई जा रही है।इधर शनिवार को cbse 12th के परीक्षा परिणाम जारी किए गए तो पुष्पा नाम की छात्रा ने 77% अंक पाये उसको ईडब्ल्यू एस में ही दाखिला मिला था और उसने कालेज का नाम रोशन किया। इससे स्तर की आपत्ति तो सवाल के घेरे में है।ऐसी और भी कहानियां होंगी।
एक और बात मैं एक वीडियो देख रहा था।इसमें सरकारी स्कूल की बच्चियां गीत के माध्यम से गर्भ में बालिका हत्या की समस्या को उठाती हैं और समाज को सोचने को मजबूर करती हैं। इससे पता चलता है कि प्रतिभा संसाधनों की मोहताज नहीं है जरूरत है उसे तराशने की और अपनी जिम्मेदारी निभाने की और इंसान बनने की।

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