विचार

शनिवार, 19 मई 2018

कर्नाटक का नाटक

कर्नाटक का सियासी ड्रामा अपने आखिरी दौर में है। इससे पहले चुनाव प्रचार और उसके पहले जो हुआ शर्मनाक था तो अब जो हो रहा है वह भी खतरनाक है। लोकतंत्र के चोर दरवाजों का जमकर इस्तेमाल हो रहा है। हालांकि समय का फेर तो देखिए कुछ लोगों को उम्मीद नहीं रही होगी कि ऐसा भी समय आ सकता है कि उनके बनाये गलियारे का कोई और इस्तेमाल करेगा और उन्हें न्याय का राग अलापना पड़ेगा। फ़िलहाल आम लोग एक बार फिर सत्ता के लिये हर तरह की अनीति देखने के लिए विवश है।
 फ़िलहाल चलते हैं 2018 के परिणाम पर आम जनता बीजेपी को 104, कांग्रेस को 78, निर्दलीयों को 2, जनता दल एस गठबंधन को 38 सीट दीं। मतलब जता दिया किसी से ज्यादा खुश नहीं है, मगर जैसे हर कर्म का फल भुगतना पड़ता है वैसे जनता के इस निर्णय का फल तो उसे भुगतना था मगर इतनी जल्दी होगा पता नहीं था। अपनी लोकतांत्रिक व्यवस्था की खामियां इस क़दर उजागर होगा पता नहीं था। पहले जिसके खिलाफ जनादेश मांगा अब गठबंधन,  फिर राज्यपाल के फैसले औऱ इतिहास का दोहराया जाना सब पर सवाल है।

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