विचार

मंगलवार, 24 अप्रैल 2018

दलित साधु को महामंडलेश्वर बनाने की घोषणा

आज की सुबह अखबार की एक खबर ने बरबस ही मेरी यादों की सुइयों को कुछ पीछे अतीत में पहुंचा दिया।ख़बर कहो या खिड़कियां खोले जाने का उपक्रम, जिसे प्राचीन ग्रंथों में कहा गया है कि आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वत: जिसका अर्थ सम्भवतः है कि विचारों की खिड़कियां हमेशा खोलकर रखें ताकि दुनिया के हर कोने से सदविचार आ सकें।
    दरअसल, एक घोषणा हुई थी प्रयाग से, यहां अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने यमुना तट पर एक दलित साधु को महामंडलेश्वर बनाने की घोषणा की थी। वैसे तो साधु की कोई जाति नहीं होती, हमारे यहां यही आधार है मगर देश में फिलहाल जो माहौल है और कुछ लोग सत्ता के लिए इस हद तक गिर चुके हैं कि सामाजिक विभाजन का कोई मौका नहीं छड़ते इसलिए जोर देना पड़ रहा है कि सब देख लें उम्मीदें अभी बाकी हैं और सत्ता के स्वार्थ में जिस धर्म और संस्कृति को लांछित किया जाता है अबकी एकता सम्मान की आवाज वहीं से उठी है।
ये सब इसलिए याद आ रहा है कि अक्सर तमाम राजनीतिक लोग दलित साथियों को भड़काया जाता है कि उनकी समस्याओं की वजह उनका धर्म ही है। कुछ घटनाएं हो सकती हैं उस पर कार्रवाई भी होनी चाहिए, मगर इसके पीछे व्यक्ति विशेष की आपराधिक मानसिकता ही मानना चाहिए। अभी मुझे हाल की एक घटना याद आ रही है। दुनिया भर में न्याय का बुनियादी सिद्धान्त है कि 10 अपराधी छूट जाए मगर एक निरपराध सजा न पाए। इसलिये संभवतः कानून की आंखों पर पट्टी बंधी होती है ताकि वह सिर्फ सबूत की बिनाह पर फैसले दे।
इसी मकसद से सर्वोच्च न्यायालय ने एससी एसटी एक्ट के कार्यान्वयन के लिये जांच पर जोर दिया था ताकि अगर ग़लत आरोप लगाए जाएं तो निरपराध को सजा न मिले। मगर तमाम लोगों ने इसे ऐसे प्रचारित किया गया कि जैसे आरक्षण खत्म कर दिया गया और लोगों को भड़काकर देश को ठप कर दिया गया। अब भी इस तरह की कोशिश जारी है। इस माहौल में ऐसे कदम उन लोगों के लिये तमाचा हैं जो सत्ता के लिए सामाजिक विभाजन से बाज नहीं आते और देश हित को तिलांजलि दे देते हैं।
फिलहाल प्रयाग से जो फैसला हुआ है वो हमारे सामाजिक ताने बाने को मजबूत करेगा। उम्मीद करेंगे ऐसे और फैसले अलग अलग क्षेत्रों से आए ताकि ये मिसाल और खबर न हो बल्कि आम बात है। यही देश की एकता अखंडता और हमारी सांस्कृतिक विशेषताओं का अंतिम पंक्ति के व्यक्ति तक लाभ पहुंचना होगा।

सोमवार, 16 अप्रैल 2018

विकास यज्ञ

चहुं ओर विकास के लिए

सरकार ने कथा सुनी

पूंजीपतियों ने किया मंत्र प्रवाह

और अरमान हमारे हवन बने

हम तो  श्रो ता, द्

दर्शक रहे हमको मिला प्रसाद
 


इस यज्ञ का धुंआ यहीं तक फैला

हम देख रहे अपनी ओर शांत आकाश

किसी ने बताया हवा के साथ

तुम्हारी ओर ही आएगा

होगी स्वर्ग कुसुमों की बरसात

बीते दिन पर दिन... अब तो आस भी छूटी

अब ऐसे ही फफक फफक कटेगी रात।।