विचार

शुक्रवार, 8 जुलाई 2011

तो इसलिए सिब्बल लोकपाल विरोधी हैं

मजबूत लोकपाल के लिए २०११ में जनता के आंदोलन के खिलाफ, यूपीए सरकार के सबसे मुखर (आंदोलन विरोधी) प्रवक्ता मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ही बनकर उभरे थे। लेकिन अब भ्रष्टाचार की लपटें उनतक पहुंच रही हैं। इस संबंध में सीपीआईएल(सेंटर ऑफ पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन) ने कोर्ट में आवेदन देकर यूएएसएल एग्रीमेंट का उल्लंघन करने पर आरकाम पर लगाए गए ६५० करोड़ के जुर्माने को पांच करोड़ में बदलने का आरोप लगाया है। अब मामला न्यायालय में पहुंचने पर इनकी भूमिका की भी जांच हो सकती है। इसके साथ ही २-जी स्पेक्ट्रम मामले में अटार्नी जनरल जीई वाहनवती की भी मुश्किल बढऩे की संभावना है।

रविवार, 3 जुलाई 2011

लो अब दिल की बात जुबां पर आ ही गई

देश के सबसे ईमानदार नेता और हमारे प्रधानमंत्री ने रविवार को लोकपाल के मुद्दे पर आयोजित सर्वदलीय बैठक में मन को अपने लोगों के सामने खोलकर रख दिया। प्रधानमंत्री का मानना है 'लोकपाल बिल हमारे लोकतांत्रिक ढांचे में मौजूद अन्य संस्थाओं की तर्कसंगत भूमिका और उनके अधिकार को कोई कमतर नहीं कर सकताÓ। हमारा संविधान एक दूसरे की संतुलन की व्यवस्था पर कायम है। मतलब साफ है सरकार नई पहल नहीं करना चाहती चाहे देश घोटाले दर घोटाले का दंश झेलता रहे। साथ ही सरकार लोगों को धोखा देने के लिए वैसा ही कोई लोकपाल चाहती है। जैसा हमारे संविधान में सीवीसी जैसा सम्मानीय पद है। सरकार ऐसा लोकपाल चाहती है जो बिना दांत का हो और किसी नेता और अधिकारी को केवल उपकृत किया जा सके। बस हिस्सा मिले बस। आज तक इस देश में एक भी बड़े नेता को सजा शायद ही मिली हो। साथ ही आजकल के परिदृश्य को देखकर तो प्रधानमंत्री के कहे एक-एक शब्द सही प्रतीत हो रहे हैं कि हमारी व्यवस्था संतुलन पर आधारित है, सब एक दूसरे को पुष्ट करते हैं, सारे कानून कमजोरों के लिए हैं। वैसे सरकार ने इस बैठक के जरिए एक अपूरणीय शर्त तो थोप दी है, कि सर्वसम्मति से मजबूत लोकपाल का कानून बनेगा। हमें मालूम है हमारे घरों में यदि एक पिता के दो संतान हैं तो उनमें शायद ही किसी मुद्दे पर सहमति बनती हो।