एक समय था गुण के हिसाब से नाम रखे जाते थे. धीरे धीरे लोगों में यह गलतफहमी हुई कि बच्चे का नाम गुणवान व्यक्ति के नाम पर रख दिया जाय तो बच्चा उस जैसा हो जाएगा लेकिन जैसे इस विचार का कोई आधार नहीं था परिणाम भी अनुमान के मुताबिक क्यों होता तभी तो नाम बडेरा दर्शन थोड़ा की विपरीत अर्थ वाली कहावत भी बनी. क्योंकि अच्छे नाम वाले खराब काम करते रहे. या गुणी नाम रखने के बाद भी बच्चे में या तो गुण नहीं विकसित हुए या उसने अवगुण अपना लिए..
ऐसी ही कहानी यूपी के टीपू की है, टीपू को लोगों ने दिलों का सुल्तान बनाना चाहा लेकिन वह क्या से क्या रह गया वह अब भी रसायन और फॉर्मूले की तलाश में है और यूपी इससे आगे बढ़ गया है , टीपू को एक बार यूपी के लोगों ने सुल्तान बना दिया. लेकिन पांच साल तक सुल्तान रहने के बाद भी इंजीनियर लोगों के सपनों को हकीकत नहीं बना सका.. और न टीपू यह समझ सका कि यूपी की सोच बदल रही है..
टीपू को सुल्तान जाति धर्म से परे सोचकर सभी लोगों ने समर्थन दिया था लोगों ने टीपू के साथ सपना देखा था .. लेकिन सुल्तान बने टीपू ने इसे अपनी इंजिनियरिंग का परिणाम समझ लिया और सल्तनत पर अनुवाआंशिक अधिकार..इंजीनियर तब से पहले के अपने पिता के जाति धर्म फॉर्मूले पर चलता रहा, घर की व्यवस्था बिगड़ने लगी और घर तपकने लगा तो जिम्मेदारी आसपास के लोगों पर डालने लगा जबकि जनता कुछ और सोच रही थी .. खैर जनता तो जनता है.. वह इससे ऊब गई.. और बाद में सुल्तान बदल दिया...
अब समय था कि टीपू बदले हुए मिजाज को समझे और खुद को काबिल बनाये...लेकिन टीपू फॉर्मूले के सहारे सल्तनत पाने की कोशिश करने लगा और शिकास्ट के बाद नया फार्मूला...अभी टीपू जिस सोशल इंजिनियरिंग को कर रहा है.. इससे पहले की परीक्षा में इसके उलट भी कर चुका है... मतलब दृढ़ता की कमी
अब जब सल्तनत की नई परीक्षा नजदीक आ रही है.. क्या टीपू नये फॉर्मूले पर है... सोशल इंजिनियरिंग के इस फॉर्मूले में समाज में विभाजन और एक वर्ग को विलन बताना रसायन है, टीपू के लिए तो सोचना मुश्किल है लेकिन लोगों को देखना होगा कि यदि टीपू की बात मान भी ली जाय तो उनके लिए क्या बदलेगा क्योंकि टीपू तो हारा खिलाडी है और उसकी हर थियारी में पेच है ...
तभी तो वो बातें उठ रही हैं जो समाज में भी उस तरह नहीं हैं.. जैसा टीपू बता रहा है.. और समाज जिसे भूलाना चाहता है और ऐसा करने वाले उसके मोहरे को उसका संरक्षण है..क्या टीपू जिसे विलन बताना चाह रहा है उसका सही मूल्यांकन कर पायेगा और उनके बराक्स अपने को कहीं खड़ा पाएगा... क्योंकि जब टीपू को मौका मिला तो उसने क्या किया...