विचार

रविवार, 25 नवंबर 2018

नेताओं के बिगड़े बोल : राजनीतिक प्रदूषण पर कब बात शुरू होगी


देश में पर्यावरण प्रदूषण और गंगा के प्रदूषण पर कम से कम बात शुरू हो गई है, मगर एक और प्रदूषण जो हमारी जिंदगी को प्रभावित करता है उसको लेकर समाज में सुगबुगाहट तक नहीं है। देश की राजनीति में शुचि अशुचि का भेद मिटता जा रहा है। यह किसी भी समाज के लिये चिंताजनक होना चाहिए क्योंकि सामाजिक विकास की प्रक्रिया में यही प्रकाश स्तम्भ का कार्य करता है, इन्हीं राजनेताओंकी सोच के प्रकाश में दूसरे लोग आगे बढ़ते हैं। यह पहले भी हुआ है, आज के युग में भारत, पाकिस्तान उदाहरण हैं तो सभ्यता की शुरुआत करने वाले या मिलजुलकर रहने की पहल करने वाला कोई एक ही रहा होगा, बाकी लोगों ने उसे अपनाया। क्योंकि सब की एक बराबर बौद्धिक दृष्टि संभव नहीं है। बहरहाल एक जमाने में कांग्रेस के भीतर ही नरम दल और गरम दल बन गए थे। क्रांतिकारियों की शैली पर भी लोगों में मतभेद थे। इन सबके नेता एक दूसरे का सम्मान भी करते थे। नेहरू जी के समय में भी पार्टी के भीतर किसी असहमति पर उसी पार्टी के सांसद कवि दिनकर लिख सकते थे कि सिंहासन खाली करो कि जनता आती है....मगर इतने अरसे बाद लगता है देश में राजनेताओं की सोच ही प्रबंधित हो गयी है न उनके पास इतने शब्द हैं औऱ न ही अपने अनुयायियों के नेतृत्व कर सकने की क्षमता की वो लोगों को अपनी बातें समझा सकें। नतीज़तन लोक तंत्र भीड़ तंत्र में तब्दील होता जा रहा है भीड़ के आगे दलों और सरकारों के घुटने टेकने के नज़ारे आम हैं। अब सत्ता में आने के लिए और बने रहने के लिए संगठित बिना समझ के काम करने वालों की भावनाओं का पोषण नेताओं की जैसी मजबूरी बन गयी है, या नेता खुद ही ऐसा समाज बनाना चाह रहे हैं जो आसान भले गलत रास्ता हो उसकी ओर भागे। वो सवाल करने लायक ही न रहे बस मन की दो बातों से ही वो अपने में ही पागल हो जाय। इन सबके सम्मिलित प्रभाव से राजनीतिक प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। अब एक दूसरों को कोसने में शब्दों की मर्यादा की दीवार टूटती जा रही है। ये इनके बोले हुए शब्दों के दुष्प्रभाव की चिंता भी नहीं कर रहे। राजनेताओं में भी असहिष्णुता बढ़ती जा रही है। अभी महज कुछ सालों पहले समाजवादी पार्टी के सबसे बड़े नेता और पूर्व मुख्यमंत्री ने रेप की घटनाओं पर कहा था ये लड़के है...गलतियां हो जाती हैं। यह बयान अमर्यादित था मगर वो वोट के दबाव में घुटने टेक दिये। दरअसल उसी दरम्यान उनके ही क्षेत्र में उनकी जाति के दबंग पर रेप का आरोप लगा था और वो अपने जाती के लोगों पुरुषों के साथ हर हाल में साथ रहने का संदेश दे रहे थे क्योंकि वो जानते हैं कि हमारे समाज में आज भी फैसले मर्द ही करते हैं। कुछ साल पहले चुनाव रैली में कांग्रेस पार्टी की पुर्व अध्यक्ष ने गुजरात के मुख्यमंत्री को मौत का सौदागर तक कह दिया था, उस दौरान वे एक धर्म विशेष के लोगों को डरा रहीं थी। वहीं शायद 2014 के आसपास बीजेपी के अब के बड़े नेता ने कांग्रेस नेता की गर्ल फ्रेंड को लेकर 50 लाख की गर्ल फ्रेंड का जुमला उछाला था, यह भ्रष्टाचार और उनके अभिजात्य पर वार करने के लिए अपने वोटबैंक को और उग्र करने के लिए था। यह प्रदूषण बढ़ते बढ़ते सड़ांध के स्टार तक पहुंच गया है। आजकल कांग्रेस के अध्यक्ष राहुलगाँधी अक्सर सभाओं में चौकीदार ही चोर है का जुमला उछालते हैं दरअसल प्रधानमंत्री खुद को अक्सर जनता का चौकीदार कहते हैं ऐसे में उनको घेरने के लिए करते हैं। यह शायद कुंठा का भी मामला है कि पुर्व की उनकी पार्टी की सरकार जाने की एक बड़ी वजह भ्रष्टाचार भी था जिसने जनता को बदलने के लिए प्रेरित किया। अब कीचड़ की होली ही शुरू हो गयी है ताकि कोई साफ न दिखे। और बातें सब हवाहवाई ही हो रही हैं। यह सब एक व्यक्ति से नाराज वोटों को साधने के लिए हो रहा है। इसलिए विजेता पर हमले ज्यादा हो रहे हैं। किसी को ये चिंता नहीं है कि ये प्रदूषण कैसे रूकेगा। कुछ दिन ही पहले एक चुनावी रैली में यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष राज बब्बर ने प्रधानमंत्री को मनहूस कह दिया। ये प्रदूषण यही नहीं रुक एक अन्य रैली में राजस्थान मचुनाव में एक सभा में स्थानीय प्रत्याशी और कांग्रेस प्रत्याशी सीपी जोशी ने प्रधानमंत्री की जाती तक पूछ डाली यह ब्रामण मतदाताओं को गोलबंद करने के लिए किया गया।हालांकि नेता लोगों को वो देना चाह रहे हैं जो शायद उन्हें चाहिए भी नहीं और उन्हीं के नाम पर। यह लिस्ट यहीं खत्म नहीं होती। एक आंदोलन से निकली आम आदमी पार्टी के नेता काम बेलगाम नहीं हैं। मंत्री रह चुके इस पार्टी के नेता को एक चैनल की एंकर की बात उतनी बुरी लगी वहां पर जाकर बैठने की बात कह दी कि यही मर्द दिन के उजाले में भी जाने में घबराते हैं। शर्मनाक यह है है कि इस मामले में उन्हीं की पार्टी के महिला नेता के माफ़ी की मांग करने पर दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल समेत पुरी पार्टी उस पर ही टूट पड़ी और दो महिलाओं का नाम लेकर पहले उसको न्याय दिलाने की नसीहत देने लगी कि जैसे तब तक ये कुछ भी बोलते रहेंगे कोई चाहे कुछ भी कर ले। ये लिस्ट इतनी छोटी नहीं है बिहार भाजपा अध्यक्ष नित्यानंद रॉय का प्रधानमंत्री की ओर उंगली उठाने पर उँगली तोड़ने का बयान,कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह का अपनी ही पार्टी के महिला नेता को टंच माल कहना, बीजेपी सांसद नेपाल सिंह का एक मौके पर ये सेना के जवान है जान तो जाएगी ही,इसके अलावा भी बीजेपी के तमाम नेता विवादित बयानों और कई बार हिन्दू मुस्लिम मुद्दों पर सुर्खियों में रहता है। यह प्रदूषण समाज को प्रभावित कर रहा है इसलिए जनता को ही इसे रोकने आगे आना होगा। क्योंकि सारा खेल उसी के नाम पर हो रहा है। और समाज की इस पर चुप्पी थी नहीं है उसे इन नेताओं को बताना होगा कि वो यह नही चाहते।

रविवार, 18 नवंबर 2018

राज्यों के चुनाव में सावरकर भी मुद्दा


पिछले दिनों एक चुनावी रैली में दिए गए बयान से कांग्रेस अध्यक्ष मुश्किल में फंस सकते हैं। रैली में राहुल ने कहा कि वीर सावरकर ने जेल से छूटने के लिए अंग्रेजों से माफी मांगी थी।इस पर सावरकर के परपोते आर सावरकर ने उनके खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर करने की बात कही है। कहा कि राहुल का बयान झूठ है, उनको अंग्रेजों ने २७ साल जेल की सजा थी। गौरतलब है कि राजस्थान की चुनावी रैली में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल ने आरोप लगाया था कि सावरकर ने अंग्रेजों को पत्र लिखा था कि वह अंग्रेजों के लिए कुछ भी करेंगे। राहुल गांधी ने दावा कि सावरकर ने ब्रिटिश हुकूमत से कहा था कि वो किसी राजनीत के गतिविधियों में शामिल नहीं हैं, मुझे जेल से से मुक्त कर दो।

शनिवार, 17 नवंबर 2018

सिख दंगा: गवाह के सज्जन कुमार के पहचानने से कांग्रेस की भी मुश्किल बढ़ेगी


1984 के सिख दंगे देश की सियासत पर बदनुमा दाग हैं। तत्कालीन प्रधानमंत्री की हत्या के विरोध के सनक में कराए गए इन दंगों के दाग सबसे पुरानी पार्टी पर है। एक कांग्रेस नेता का बयान कि बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है और दो दशक तक जांच को दिशा न मिलना आरोपियों के संरक्षण की ओर इशारा करता है। अब भी पार्टी इससे जुड़े सवालों का जवाब देने से बचती नज़र आती है। दुनिया की विभिन्न सभ्यताओं ने अपने कुकृत्यों के लये समय समय पर माफी मांगी है, जर्मनी में नाजियों का कोई नाम लेवा नहीं है, ब्रिटिश लोगों ने भी तमाम बातों के लिए माफी मांगी है मगर अभी भारत में पश्चाताप की प्रवृत्ति का लगता है इनतजार करना होगा। इससे अपराध का स्टेटस नहीं बदलेगा, मगर पीड़ित परिवारों को ढांढस बंधेगा और शायद सिख दंगा पीड़ितों को कांग्रेस की उस क्षमा याचना करने के दिन का इनतज़ार रहेगा। बहरहाल केन्द्र की मोदी सरकार के गठन के बाद गठित एस आई टी को दोषियों को उनके मुकाम तक पहुंचाने में सफलता मिलने लगी है। सरकार की ओर से गवाहों के लिए दिल्ली पंजाब में दिया विज्ञापन रंग ला रहा है,न्याय मिलने की आस छोड़ चुके कई चश्मदीद और पीड़ित एस आई टी तक पहुंचे हैं और कोर्ट में बयान भी दर्ज कराया है। इसी के तहत १ नवंबर १९८४ को दिल्ली के महिपालपुर में ५०० लोगों की भीड़ के एक दुकान पर धावा बोलकर तोड़फोड़ करने और ३ भाइयों को जिंदा जलाने के मामले में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश की अदालत ने बीते दिन दो दोषियों को दोषी करार दिया है। ३४ साल बाद आए इस फैसले को भले ही मुकाम मिलने में अभी लंबा इंतजार करना पड़ेगा मगर टूटी उम्मीद तो फिर बंधी ही है। गौरतलब है कि गवाह न मिलने से बंद हो चुके इस केस में विज्ञापन पढ़ने के बाद पीड़ित परिजन डिल्ली लौटा। इसी कड़ी में अब एक मामले में पटियाला हाउस कोर्ट में एक गवाह ने पूर्व कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को पहचान लिया है। इससे कांग्रेस की भी मुश्किल बढ़ेगी, भले ही उसने सज्जन से नाता तोड लिया हो। मगर इन जांचों की तरफ तत्कालीन सरकारें जिनमें एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस सरकारें भी थीं इनको आगे क्यों नहीं बढ़ा पाइं।उनकी संवेदना किसकी तरफ है पीड़ित या आक्रामक। यह भी की इतनी बड़ी वारदातें बिना किसी बड़े नेता की शह या चुप्पी के स्थानीय नेता कैसे अंज़ाम दे सकते हैं या मामला कुछ और है इन सबके जवाब तो उसके नेताओं को देने होंगे। खैर हम इंतजार करेंगे कि सियासत कैसी करवट लेती है।

गुरुवार, 15 नवंबर 2018

अफरीदी का ब्रिटिश संसद में बयान इमरान पर निशाना


अपनी बल्लेबाजी से एक दौर में सुर्खियों में रहने वाले पाकिस्तान के बल्लेबाज अफरीदी ब्रिटिश संसद में छात्रों को दिए बयान को लेकर सुर्खियों में हैं। इससे संबंधित जो वीडियो सामने आ रहा है उसमें कश्मीर की हताशा के साथ जो प्रमुख बात सामने आ रही है वो बात अंतरराष्ट्रीय मामले से ज्यादा उनकी घरेलू राजनीतिक स्थिति को इशारा कर रही है। दरअसल वीडियों में अफरीदी कहते नज़र आ रहे हैं कि पाकिस्तान से उसके ही चार प्रांत संभल नहीं रहे हैं। यह तीन महीने पहले गठित पाकिस्तान सरकार के मुखिया पर पहला अप्रत्यक्ष बड़ा हमला है, जिसमें ३ महीने में किसी बदलाव का नजर आना तो दूर उस दिशा में बढ़ने की बात भी नजर नहीं आ रही है। इससे पाकिस्तानियों में असंतोष पैदा हो रहा है। दरअसल चुनाव जीतने के लिए इमरान ने जो दावे कर डाले थे उसके उलट ही कार्य करते नजर रहे हैं। चुनाव के दौरान उन्होने विदेशी कर्ज लेने की पुरानी सरकारों की कड़ी आलोचना की थी मगर अपनी बुनियादी पूंजी भारत दुश्मनी में जेहादी ताकतों और आतंकियों के हाथों लुटा बैठे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को दर दर सहायता मांगने के लिए भटकना पड़ रहा है। ३ महीने में ही वो सहायता के लिए सऊदी अरब और चीन तक का चक्कर लगा आए हैं। सऊदी ने तो उनकी कुछ सहायता की मगर सदाबहार दोस्त चीन से कुछ ठोस आश्वासन नहीं मिला इसने इमरान, पाकिस्तान और पाकिस्तान आर्मी की जग हंसाई कराई क्योंकि इमरान को पाकिस्तान सेना का पूर्ण समर्थन माना जाता है। वहीं पाकिस्तान के रुपए का फिसलना जारी है, जिसको लेकर इमरान दूसरी सरकारों पर तंज कसते थे, परिणाम तो दूर वहां के वित्त मंत्री असद उमर अभी ऐसे उपाय भी नहीं कर पाए हैं कि बाजार में कुछ उम्मीद ही पैदा हो जिससे पाकिस्तानी रुपया जितना गिर चुका है वहीं संभल सके। महंगाई बढ़ ही रही है, जिसके आई एम एफ से कर्ज लेने के बाद और बढ़ने की आशंका पाकिस्तानी अवाम से मीडिया तक है । इसके एवज में वित्तमंत्री बस पुरानी सरकारों का दोष गिनाते नजर आते हैं अब तक कोई प्लान वो नहीं पेश कर सके है। इससे पहले की भी सरकारें अपने पूर्वर्ती पर दोष मढ़ के ही काम चला रही थीं। इसके अलावा राज्यों के हालात भी ठीक नहीं है बुनियादी सुविधाएं तो है नहीं इनके पाले जेहादी अब इन्हीं को आंखे तरेर रहे हैं, वो जब चाहते हैं पूरे पाकिस्तान को बंधक बना लेते हैं, वहां किसी के जीने कि कोई गारंटी नहीं दे सकता। एक से अधिक गिरोह होने से हालात और मुश्किल हो गए हैं। साथ ही पाकिस्तान असमंजस की स्थिति में है। इससे अवाम की उम्मीदें टूट रही हैं। इसलिए संभवतः पाकिस्तानी राजनीति में उतरने की कोशिश कर रहे अफरीदी वीडियो में अपनी जगह बनाने और अपने समर्थकों को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं। अब महत्वपूर्ण है इमरान पर निशाने के लिए जगह के चुनाव की। दरअसल पाकिस्तान मीडिया में अब भी इमरान को कुछ और समय दिए जाने का एक सामान्य विचार है। इसलिए इस तरह के बयान को ज्यादा तवज्जो नहीं मिलने की आशंका थी। साथ ही इमरान को सेना का भी समर्थन है, इससे अफरीदी को विश्वास रहा होगा कि यूके में इस तरह का बयान देने से उसे मीडिया में जगह भी मिलेगी और उनके समर्थकों, imran sarkar और अवाम को भी संदेश पहुंच जाएगा। ऐसा हुआ भी, अफरीदी के बयान के पक्ष विपक्ष और विवेचना संबंधी प्रतिक्रिया आने लगीं। इधर भारतीय मीडिया के कश्मीर पर उनके बयान को लेकर ज्यादा तवज्जो का उन्होंने खंडन भी कर दिया। कुल मिलाकर वो यूके में छात्रों नहीं अपनी अवाम से ही रूबरू थे। इसमें हो सकता है उन्हें सेना का भी समर्थन हो क्योंकि ३ महीने में कुछ बदलाव आता नजर नहीं आ रहा है। और इमरान सरकार को सेना का पूर्ण समर्थन माना जाता है, ऐसे में इमरान की असफलता की तोहमत से सेना बच नहीं सकेगी। इससे सेना एक मोहरे के पीटने से पहले दूसरा तैयार कर लेना चाहती हो। अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं के नेताओं कि छबि जैसी बिगाड़ी जा चुकी है इसलिए सेना ने आगे बढ़ने का इरादा किया होगा। जैसा कि विदित है कि पाकिस्तान कि राजनीति हो या सेना सर्वाइव करने या जगह बनाने के लिए कश्मीर का शोशा उड़ाने की जरूरत होती है ऐसे में अफरीदी का बयान उसी की फेहरिस्त का बस एक नया नाम भर है। इमरान से लेकर पूर्वर्ती नेताओं तक सबने यही किया। अब असल चुनौती इमरान की है अब उन्हीं की पिच पर संभवतः अफरीदी खेलने और चुनौती देने की कोशिश कर रहे हैं। ये भी क्रिकेटर हैं इमरान की तरह अनुयायियों की तादाद अच्छी है, पाकिस्तानी क्रिकेट का नाम बढ़ाने वाला नाम, राजनीति में न होने से दामन पर दाग नहीं, कश्मीर राग गाने को तैयार और भारत दुश्मनी की बात कर सेना का समर्थन पाने की जुगत सारा खेल हूबहू इमरान का। अब तो शायद उन्हें बस इमरान के असफल होने का इंतज़ार हो । अफरीदी गेंदबाज भी हैं तो सम्भवतः शुरू हो जाएं खेल में। अब इमरान के पास विकल्प कम हैं पाकिस्तान की आर्थिक हालत सुधारने के लिए एक तो दीर्घकालीन प्रयास की जरूरत है, दूसरे कारोबारी माहौल बनाने के लिए जेहादियों से मुक्ति पानी होगी यह मुश्किल होगी क्योंकि इमरान के सिर पर ताज सजाने में इनकी अहम भूमिका रही है और इमरान भले ही पाकिस्तान को वर्ल्ड कप jitaen हों सेना उन्हें स्टेट्समैन नहीं बनने देगी। ऐसे में इमरान छोटे विकल्प भारत दुश्मनी को पूर्ववर्तियों की तरह आजमा सकते हैं। इससे भारत सरकार और उसकी एजेंसियों को सजग रहना होगा। इधर अफरीदी अपने लिए मौके देख रहे हैं और उन्होंने दबाव बढ़ा दिया है। आमतौर पर खिलाडी राजनीतिक विषयों से दूर रहते हैं, मगर अफरीदी पाकिस्तान में मानवाधिकार उल्लंघन की तरफ से आंख बंद कर कश्मीर को लेकर सुर्खियों में रहने का शगल संभवतः इसीलिए पाल रहे हैं। बहरहाल पाकिस्तान में इमरान की चुनौती बढ़ है।

रविवार, 11 नवंबर 2018

उत्तर के राज बनने की फ़िराक़ में राहुल गांधी


अवसर का इफरात न होना, अयोग्यता के साथ महत्वाकांक्षा देश में आर्थिक क्षेत्रवाद को बढ़ावा दे रही है और यह आग पश्चिम में महाराष्ट्र से उत्तर और मध्य भारत आ पहुंची है। इस आग को बढ़ा रहे हैं राजनीतिक दल और 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव इसके लिए प्रयोगशाला बन गए हैं। आज से कुछ अरसे पहले ऐसी बातों के लिए मुंबई सुर्खियों में रहती थी। जिसकी शुरुआत स्वर्गीय बाला साहेब ठाकरे के मराठी मानस नारे के साथ हुई। जहां सत्ता के लिए आर्थिक संसाधनों पर मुंबईकर का पहला हक का नारा उछाला गया। इसका लाभ उन्हें मिला भी। पहले दक्षिण भारतीयों के खिलाफ शुरू हुई यह अराजकता बाद में यूपी बिहार के लोगों के खिलाफ भी फली फूली, जिसमें इनसे मारपीट भी शामिल है। जिसे ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे ने खूब बढ़ाया। इसका उन्हें भी लाभ मिला, इससे उनका अच्छा खासा राजनीतिक आधार तैया हो गया है। अब यही राजनीतिक रेसीपी उत्तर भारत में आजमाने कि कोशिश की जा रही है। छत्तीगढ़ में विधान सभा चुनाव को लेकर शनिवार को कांकेर में आयोजित रैली में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि यहां अन्य राज्यों के लोगों को रोजगार दिया जा रहा है। हम सत्ता में आए तो छत्तीसगढ़ के लोगों को ही रोजगार देंगे। इससे महज कुछ दिनों पहले भोपाल की सभा में उन्होंने सीधे सीधे मध्य प्रदेश के लोगों को भड़काया था और आरोप लगाया था कि यहां गुजरात के लोगों को रोजगार दिया जा रहा है। हालांकि इस आंकड़े पर हमेशा सवाल उठेंगे की क्या पलायन अमीर राज्य से गरीब राज्य की ओर हो सकता है मगर यह राजनीति राज के मुंबई में मुंबईकर से अलग नहीं है। इसमें न सहिष्णुता है और न देश की एकता का संदेश जैसा कि अक्सर कांग्रेसी नेता दिखावा करते हैं। यह ऐसा मवाद है जो फैलता ही जाता है और आखिरकार शरीर को यानी देश को खत्म करने के बाद ही रुकता है। अफसोस की बात है कि अब एक राष्ट्रीय पार्टी आर्थिक क्षेत्रवाद को बढ़ाने की कवायद में जुटी है। फिर इससे छोटे रूप में जातीय आधार पर राजनीति करने वालों की आप आलोचना कैसे कर पाएंगे। वैसे आर्थिक क्षेत्रवाद को बढ़ाकर सत्ता तक पहुंचने की राहुल की बेसब्री समझ में आती है। एक दशक की राजनीति में राहुल के खाते में कोई उल्लेखनीय उपलब्धि नहीं है और अब जब अध्यक्ष बन गए हैं उनकी पार्टी को लेकर जवाबदेही है तो वो अधीर हो गए हैं। संभवतः उन्होंने मान लिया है कि अभी नहीं तो अरसे तक नहीं। इसलिए वो जनता की आर्थिक लालच की कमजोरी का लाभ उठाना चाहते हैं और आर्थिक आधार पर सबको एक दूसरे के खिलाफ भड़का रहे हैं मगर इसका राहुल से भविष्य जवाब मांगेगा कि क्या स्वतंत्रता सेनानियों ने इसी दिन के लिए कुर्बानी दी थी।

शनिवार, 10 नवंबर 2018

प्रदूषण से लड़ना किसकी जिम्मेदारी


देश में गर्मी जाड़ा बरसात के छह मौसम कभी दुनिया के लिए भारत को ईश्वर की नेमत थे मगर सभ्यता के महज ६००० वर्षों में यह खूबी देशवासियों को इतना डराएगी। शायद ही किसी ने सोचा होगा। मैं बात कर रहा हूं सर्दी की देश में जाड़े ने दस्तक दे दी है और साथ ही डर ने, डर है बीमारी का और मौत का। मगर क्यों कारण मनुष्य के ही कार्यों का परिणाम यानी प्रदूषण। देश की राजधानी में हवा इतनी दूषित हो गई है कि इससे लोगों को अस्थमा , स्वास समेत कई बीमारियों का खतरा मंडराता रहता है और सर्दी के गहराते ही खतरा गहरा जाता है। भारत में जाड़े के साथ ही हर साल की तरह दिल्ली का दम फूलने लगता है हवा को दूषित करने वाले तत्वों की वजह से इसका एक मापदंड पिएम २.५ और पीएम १० से। और यह लगातार बाद रहा है दिल्ली में इसकी सामान्य स्थित हवा में पीएम २.५ सामान्य ५० से १०० की जगह कई गुना ज्यादा 400 से 600 के बीच घूम रहा है इसके कई कारण माने जाते है एक देश की राजधानी होने से भौतिक विकास की उम्मीद देखते हुए देश भर से आने वाले लोगों ने बिना सोचे समझे यहां पेड़ काट डाले नतीजा दिल्ली में पेड़ पौधे देखने के लिए काफी दूर चलना पड़ता है जबकि पेड़ पौधे हमारे लिए प्राकृतिक सफाईकर्मी और जीवन का स्रोत ऑक्सीजन का भी स्रोत थी। इसके अलावा दिल्ली में लोगों के पास बेतहाशा वाहन होना, सारी दुनिया भारत सहकारिता और सहजिविता से सीख रही है और हम ही इसे भूला बैठे है। नतीजतन कई परिवारों में हर सदस्य अपनी अलग गाड़ी का इस्तेमाल करता है और उससे निकलने वाली गैसें हवा को दूषित करती हैं। एसी के साथ अभी भी दिल्ली एनसीआर में तमाम फैक्ट्रियां पुरानी तकनीक और कोयले आदि पर आश्रित हैं जो प्रदूषण की बड़ी कारक हैं, इसमें काफी कुछ का समाधान हो जाय यदि लोग अपना लालच छोड़ और नई तकनीक अपनाएं। बेतहाशा निर्माण कार्य भी एक वजह बन रही है जिसका कोई उपाय खोजना होगा। शुरुआत में इस पर कुच्छ अतिरिक्त खर्च जरूर आएगा, मगर दीर्घकाल में इसका मालिक को ही फायदा है मगर वो चेतने को तैयार ही नहीं नजर आ रहे। साथ ही हरियाणा और पंजाब के किसानों का पराली जलाना भी इसकी वजह बताई जाती है मगर शर्मनाक है कि सबको कारण और निवारण पता है मगर रोते रहने के बावजूद समाधान के लिए कोई आगे बढ़ना नहीं चाहता और सब एक दूसरे पर दोष मढ़ते रहते हैं। अधिकतर पपीहे की तरह स्वाति नक्षत्र की बूंद का इंतज़ार कर रहे हैं जहर भी पैदा कर रहे हैं सब कहते हैं सरकार कुछ करे मगर आम लोगों का काम सरकार कैसे करे कोई नहीं सोचता और यह भी की कोई सरकारी मुहिम खुद लोगों कि सहभागिता के बगैर क्या सफल हो सकती है। इस साल प्रदूषण की हर साल बनने वाली एक वजह दिवाली पर सामान्य पटाखा न जलाने देने के लिए देश की सुप्रीम कोर्ट ने कोशिश की थी। सरकारी करवाई भी हुई दुकानदारों पर आमलोगों पर मगर लोगों ने इसका पालन किया तमाम लोगों ने पड़ोसी राज्यों से पटाखे फोड़े और प्रदूषण फैलाए। आखिर इस नियम का किसको फायदा होता सरकार तो एक अव्यक्त संगठन है फिर ऐसी हठधर्मी क्यों और बाद में प्रदूषण का रोड़न क्यों। यह भी की अगर कोई खुदकुशी करना ही चाहे तो उसे कितने दिन रोका जा सकता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक 20 विं शताब्दी के शुरुआत के दशक में चीन का भी हाल कुछ ऐसा था, लेकिन 2013 से वहां की हवा साफ़ होने लगी। बीजिंग 2013 में PM2.5 स्तर 50 से लेकर 400 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर के बीच गया लेकिन ज़्यादातर 250 के नीचे ही रहा। लेकिन दिल्ली में नवंबर 2013 से जनवरी 2014 के बीच PM2.5 का स्तर 240 था जो वैश्विक स्तर से 8 गुना ज़्यादा है। इस साल दिवाली पर कुछ रिपोर्ट के मुताबिक यह दिल्ली में ये 575 तक पहुंचा। दिल्ली में बुधवार शाम को यानी दिवाली के दिन बीजिंग में PM2.5 का सबसे ज़्यादा स्तर 38 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहा जबकि दिल्ली में ये 300 रहा जो स्वीकृत स्तर से 10 गुना ज़्यादा है। इस संबंध में चीन के पर्यावरण शोध केंद्र से जुड़े मिस्टर झांग ने कहा कि चीन की सरकार ने हवा साफ़ करने के लिए विकास को कुछ धीमा करने का दर्द उठाया है। पहले नियमों का गंभीरता से पालन नहीं होता था। जबसे शी राष्ट्रपति बने तो उन्होंने इस बारे में बहुत गंभीरता दिखाई। नए आंकड़ों और विशेषज्ञों की मदद से चीन लगातार अपने लक्ष्यों को सुधारता रहता है। दरअसल चीन ने बीजिंग के आसपास कोयले से चलने वाले विद्युत संयंत्र बंद कर दिए,जिससे प्रदूषण में कमी आई। सड़कों पर कारों की संख्या पर पाबंदी लगी। जन परिवहन को बढ़ावा देकर, किराये कम किए गए। उद्योगों को ग्रीन बनने के लिए प्रोत्साहन मिला। मगर क्या हम इसके लिए तैयार हैं चीन में तो लोकतंत्र नहीं है तो क्या हम खुद अपनी अगली पीढी के लिए यूं ही मौत के कांटे बोते रहेंगे या प्रदूषण को ना कहेंगे। एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में प्रदूषण की वजह से ऐसे लोग जो सिगरेट नहीं पीते वो भी रोजाना 22 सिगरेट के धुएं के बराबर धुआं सोख रहे होते हैं। इससे उनके फेफड़े प्रभावित हो रहे हैं। ऐसे में एक ही सवाल जेहन में गूंजता है कि अब नहीं चेतेंगे तो कब चेटेंगे। ईश्वर के लिए, खुदा के लिए ईमानदारी से प्रद्दूषण फैलाने से बचें, आखिरकार इससे हमी प्रभावित होंगे, इसलिए सरकार के इंतज़ार कि बजाय खुद जिम्मेदारी समझें और प्रदूषण को न कहें।