विचार

रविवार, 11 नवंबर 2018

उत्तर के राज बनने की फ़िराक़ में राहुल गांधी


अवसर का इफरात न होना, अयोग्यता के साथ महत्वाकांक्षा देश में आर्थिक क्षेत्रवाद को बढ़ावा दे रही है और यह आग पश्चिम में महाराष्ट्र से उत्तर और मध्य भारत आ पहुंची है। इस आग को बढ़ा रहे हैं राजनीतिक दल और 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव इसके लिए प्रयोगशाला बन गए हैं। आज से कुछ अरसे पहले ऐसी बातों के लिए मुंबई सुर्खियों में रहती थी। जिसकी शुरुआत स्वर्गीय बाला साहेब ठाकरे के मराठी मानस नारे के साथ हुई। जहां सत्ता के लिए आर्थिक संसाधनों पर मुंबईकर का पहला हक का नारा उछाला गया। इसका लाभ उन्हें मिला भी। पहले दक्षिण भारतीयों के खिलाफ शुरू हुई यह अराजकता बाद में यूपी बिहार के लोगों के खिलाफ भी फली फूली, जिसमें इनसे मारपीट भी शामिल है। जिसे ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे ने खूब बढ़ाया। इसका उन्हें भी लाभ मिला, इससे उनका अच्छा खासा राजनीतिक आधार तैया हो गया है। अब यही राजनीतिक रेसीपी उत्तर भारत में आजमाने कि कोशिश की जा रही है। छत्तीगढ़ में विधान सभा चुनाव को लेकर शनिवार को कांकेर में आयोजित रैली में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि यहां अन्य राज्यों के लोगों को रोजगार दिया जा रहा है। हम सत्ता में आए तो छत्तीसगढ़ के लोगों को ही रोजगार देंगे। इससे महज कुछ दिनों पहले भोपाल की सभा में उन्होंने सीधे सीधे मध्य प्रदेश के लोगों को भड़काया था और आरोप लगाया था कि यहां गुजरात के लोगों को रोजगार दिया जा रहा है। हालांकि इस आंकड़े पर हमेशा सवाल उठेंगे की क्या पलायन अमीर राज्य से गरीब राज्य की ओर हो सकता है मगर यह राजनीति राज के मुंबई में मुंबईकर से अलग नहीं है। इसमें न सहिष्णुता है और न देश की एकता का संदेश जैसा कि अक्सर कांग्रेसी नेता दिखावा करते हैं। यह ऐसा मवाद है जो फैलता ही जाता है और आखिरकार शरीर को यानी देश को खत्म करने के बाद ही रुकता है। अफसोस की बात है कि अब एक राष्ट्रीय पार्टी आर्थिक क्षेत्रवाद को बढ़ाने की कवायद में जुटी है। फिर इससे छोटे रूप में जातीय आधार पर राजनीति करने वालों की आप आलोचना कैसे कर पाएंगे। वैसे आर्थिक क्षेत्रवाद को बढ़ाकर सत्ता तक पहुंचने की राहुल की बेसब्री समझ में आती है। एक दशक की राजनीति में राहुल के खाते में कोई उल्लेखनीय उपलब्धि नहीं है और अब जब अध्यक्ष बन गए हैं उनकी पार्टी को लेकर जवाबदेही है तो वो अधीर हो गए हैं। संभवतः उन्होंने मान लिया है कि अभी नहीं तो अरसे तक नहीं। इसलिए वो जनता की आर्थिक लालच की कमजोरी का लाभ उठाना चाहते हैं और आर्थिक आधार पर सबको एक दूसरे के खिलाफ भड़का रहे हैं मगर इसका राहुल से भविष्य जवाब मांगेगा कि क्या स्वतंत्रता सेनानियों ने इसी दिन के लिए कुर्बानी दी थी।

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