विचार

शनिवार, 10 नवंबर 2018

प्रदूषण से लड़ना किसकी जिम्मेदारी


देश में गर्मी जाड़ा बरसात के छह मौसम कभी दुनिया के लिए भारत को ईश्वर की नेमत थे मगर सभ्यता के महज ६००० वर्षों में यह खूबी देशवासियों को इतना डराएगी। शायद ही किसी ने सोचा होगा। मैं बात कर रहा हूं सर्दी की देश में जाड़े ने दस्तक दे दी है और साथ ही डर ने, डर है बीमारी का और मौत का। मगर क्यों कारण मनुष्य के ही कार्यों का परिणाम यानी प्रदूषण। देश की राजधानी में हवा इतनी दूषित हो गई है कि इससे लोगों को अस्थमा , स्वास समेत कई बीमारियों का खतरा मंडराता रहता है और सर्दी के गहराते ही खतरा गहरा जाता है। भारत में जाड़े के साथ ही हर साल की तरह दिल्ली का दम फूलने लगता है हवा को दूषित करने वाले तत्वों की वजह से इसका एक मापदंड पिएम २.५ और पीएम १० से। और यह लगातार बाद रहा है दिल्ली में इसकी सामान्य स्थित हवा में पीएम २.५ सामान्य ५० से १०० की जगह कई गुना ज्यादा 400 से 600 के बीच घूम रहा है इसके कई कारण माने जाते है एक देश की राजधानी होने से भौतिक विकास की उम्मीद देखते हुए देश भर से आने वाले लोगों ने बिना सोचे समझे यहां पेड़ काट डाले नतीजा दिल्ली में पेड़ पौधे देखने के लिए काफी दूर चलना पड़ता है जबकि पेड़ पौधे हमारे लिए प्राकृतिक सफाईकर्मी और जीवन का स्रोत ऑक्सीजन का भी स्रोत थी। इसके अलावा दिल्ली में लोगों के पास बेतहाशा वाहन होना, सारी दुनिया भारत सहकारिता और सहजिविता से सीख रही है और हम ही इसे भूला बैठे है। नतीजतन कई परिवारों में हर सदस्य अपनी अलग गाड़ी का इस्तेमाल करता है और उससे निकलने वाली गैसें हवा को दूषित करती हैं। एसी के साथ अभी भी दिल्ली एनसीआर में तमाम फैक्ट्रियां पुरानी तकनीक और कोयले आदि पर आश्रित हैं जो प्रदूषण की बड़ी कारक हैं, इसमें काफी कुछ का समाधान हो जाय यदि लोग अपना लालच छोड़ और नई तकनीक अपनाएं। बेतहाशा निर्माण कार्य भी एक वजह बन रही है जिसका कोई उपाय खोजना होगा। शुरुआत में इस पर कुच्छ अतिरिक्त खर्च जरूर आएगा, मगर दीर्घकाल में इसका मालिक को ही फायदा है मगर वो चेतने को तैयार ही नहीं नजर आ रहे। साथ ही हरियाणा और पंजाब के किसानों का पराली जलाना भी इसकी वजह बताई जाती है मगर शर्मनाक है कि सबको कारण और निवारण पता है मगर रोते रहने के बावजूद समाधान के लिए कोई आगे बढ़ना नहीं चाहता और सब एक दूसरे पर दोष मढ़ते रहते हैं। अधिकतर पपीहे की तरह स्वाति नक्षत्र की बूंद का इंतज़ार कर रहे हैं जहर भी पैदा कर रहे हैं सब कहते हैं सरकार कुछ करे मगर आम लोगों का काम सरकार कैसे करे कोई नहीं सोचता और यह भी की कोई सरकारी मुहिम खुद लोगों कि सहभागिता के बगैर क्या सफल हो सकती है। इस साल प्रदूषण की हर साल बनने वाली एक वजह दिवाली पर सामान्य पटाखा न जलाने देने के लिए देश की सुप्रीम कोर्ट ने कोशिश की थी। सरकारी करवाई भी हुई दुकानदारों पर आमलोगों पर मगर लोगों ने इसका पालन किया तमाम लोगों ने पड़ोसी राज्यों से पटाखे फोड़े और प्रदूषण फैलाए। आखिर इस नियम का किसको फायदा होता सरकार तो एक अव्यक्त संगठन है फिर ऐसी हठधर्मी क्यों और बाद में प्रदूषण का रोड़न क्यों। यह भी की अगर कोई खुदकुशी करना ही चाहे तो उसे कितने दिन रोका जा सकता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक 20 विं शताब्दी के शुरुआत के दशक में चीन का भी हाल कुछ ऐसा था, लेकिन 2013 से वहां की हवा साफ़ होने लगी। बीजिंग 2013 में PM2.5 स्तर 50 से लेकर 400 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर के बीच गया लेकिन ज़्यादातर 250 के नीचे ही रहा। लेकिन दिल्ली में नवंबर 2013 से जनवरी 2014 के बीच PM2.5 का स्तर 240 था जो वैश्विक स्तर से 8 गुना ज़्यादा है। इस साल दिवाली पर कुछ रिपोर्ट के मुताबिक यह दिल्ली में ये 575 तक पहुंचा। दिल्ली में बुधवार शाम को यानी दिवाली के दिन बीजिंग में PM2.5 का सबसे ज़्यादा स्तर 38 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहा जबकि दिल्ली में ये 300 रहा जो स्वीकृत स्तर से 10 गुना ज़्यादा है। इस संबंध में चीन के पर्यावरण शोध केंद्र से जुड़े मिस्टर झांग ने कहा कि चीन की सरकार ने हवा साफ़ करने के लिए विकास को कुछ धीमा करने का दर्द उठाया है। पहले नियमों का गंभीरता से पालन नहीं होता था। जबसे शी राष्ट्रपति बने तो उन्होंने इस बारे में बहुत गंभीरता दिखाई। नए आंकड़ों और विशेषज्ञों की मदद से चीन लगातार अपने लक्ष्यों को सुधारता रहता है। दरअसल चीन ने बीजिंग के आसपास कोयले से चलने वाले विद्युत संयंत्र बंद कर दिए,जिससे प्रदूषण में कमी आई। सड़कों पर कारों की संख्या पर पाबंदी लगी। जन परिवहन को बढ़ावा देकर, किराये कम किए गए। उद्योगों को ग्रीन बनने के लिए प्रोत्साहन मिला। मगर क्या हम इसके लिए तैयार हैं चीन में तो लोकतंत्र नहीं है तो क्या हम खुद अपनी अगली पीढी के लिए यूं ही मौत के कांटे बोते रहेंगे या प्रदूषण को ना कहेंगे। एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में प्रदूषण की वजह से ऐसे लोग जो सिगरेट नहीं पीते वो भी रोजाना 22 सिगरेट के धुएं के बराबर धुआं सोख रहे होते हैं। इससे उनके फेफड़े प्रभावित हो रहे हैं। ऐसे में एक ही सवाल जेहन में गूंजता है कि अब नहीं चेतेंगे तो कब चेटेंगे। ईश्वर के लिए, खुदा के लिए ईमानदारी से प्रद्दूषण फैलाने से बचें, आखिरकार इससे हमी प्रभावित होंगे, इसलिए सरकार के इंतज़ार कि बजाय खुद जिम्मेदारी समझें और प्रदूषण को न कहें।

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