विचार

शनिवार, 17 नवंबर 2018

सिख दंगा: गवाह के सज्जन कुमार के पहचानने से कांग्रेस की भी मुश्किल बढ़ेगी


1984 के सिख दंगे देश की सियासत पर बदनुमा दाग हैं। तत्कालीन प्रधानमंत्री की हत्या के विरोध के सनक में कराए गए इन दंगों के दाग सबसे पुरानी पार्टी पर है। एक कांग्रेस नेता का बयान कि बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है और दो दशक तक जांच को दिशा न मिलना आरोपियों के संरक्षण की ओर इशारा करता है। अब भी पार्टी इससे जुड़े सवालों का जवाब देने से बचती नज़र आती है। दुनिया की विभिन्न सभ्यताओं ने अपने कुकृत्यों के लये समय समय पर माफी मांगी है, जर्मनी में नाजियों का कोई नाम लेवा नहीं है, ब्रिटिश लोगों ने भी तमाम बातों के लिए माफी मांगी है मगर अभी भारत में पश्चाताप की प्रवृत्ति का लगता है इनतजार करना होगा। इससे अपराध का स्टेटस नहीं बदलेगा, मगर पीड़ित परिवारों को ढांढस बंधेगा और शायद सिख दंगा पीड़ितों को कांग्रेस की उस क्षमा याचना करने के दिन का इनतज़ार रहेगा। बहरहाल केन्द्र की मोदी सरकार के गठन के बाद गठित एस आई टी को दोषियों को उनके मुकाम तक पहुंचाने में सफलता मिलने लगी है। सरकार की ओर से गवाहों के लिए दिल्ली पंजाब में दिया विज्ञापन रंग ला रहा है,न्याय मिलने की आस छोड़ चुके कई चश्मदीद और पीड़ित एस आई टी तक पहुंचे हैं और कोर्ट में बयान भी दर्ज कराया है। इसी के तहत १ नवंबर १९८४ को दिल्ली के महिपालपुर में ५०० लोगों की भीड़ के एक दुकान पर धावा बोलकर तोड़फोड़ करने और ३ भाइयों को जिंदा जलाने के मामले में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश की अदालत ने बीते दिन दो दोषियों को दोषी करार दिया है। ३४ साल बाद आए इस फैसले को भले ही मुकाम मिलने में अभी लंबा इंतजार करना पड़ेगा मगर टूटी उम्मीद तो फिर बंधी ही है। गौरतलब है कि गवाह न मिलने से बंद हो चुके इस केस में विज्ञापन पढ़ने के बाद पीड़ित परिजन डिल्ली लौटा। इसी कड़ी में अब एक मामले में पटियाला हाउस कोर्ट में एक गवाह ने पूर्व कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को पहचान लिया है। इससे कांग्रेस की भी मुश्किल बढ़ेगी, भले ही उसने सज्जन से नाता तोड लिया हो। मगर इन जांचों की तरफ तत्कालीन सरकारें जिनमें एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस सरकारें भी थीं इनको आगे क्यों नहीं बढ़ा पाइं।उनकी संवेदना किसकी तरफ है पीड़ित या आक्रामक। यह भी की इतनी बड़ी वारदातें बिना किसी बड़े नेता की शह या चुप्पी के स्थानीय नेता कैसे अंज़ाम दे सकते हैं या मामला कुछ और है इन सबके जवाब तो उसके नेताओं को देने होंगे। खैर हम इंतजार करेंगे कि सियासत कैसी करवट लेती है।

कोई टिप्पणी नहीं: