एक शहर से दूसरे शहर में जाने पर कई फर्क पड़ते है.सबसे पहला तो वातावरण का ही पङता है.भोपाल से देल्ली आने पर यह फर्क मुझे सिद्दत से महसूस हुआ.जहा भोपाल का मौसम खुशनुमा है.तो देही में सुख-सुविधा की सारी चीजें होने की बावजूद व्यस्तता के कारण कहीं खोई -खोई सी रहती है.सारे देश की समस्याओं को अपने सर लेकर बड़ी जिम्मेदारी से अपना फर्ज निभा रही है। तो दूसरी और गर्मी से हलाकान है एक मिनट के लिए बिजली गुल हो जाए तो जैसे जीना मुहाल हो जाता है .बहार निकले नही की उमस से से सामना करना पड़ता है.यहाँ इतनी उमस है की पंखे के निचे से हटे नही की लगता है की सीरे की कडाही से निकाले गए हो,चिपचिपी लिजलिजी ये गर्मी ख़ुद पर ही चिढ पैदा कर देती है। देश के कोने -कोने से आकर लोग यहाँ बसे हैं.जिससे अपनी विशेषताओं केसाथ इसकी संस्कृति बहुरंगी हो गई है.जो भाषा के स्तर पर तो दिखाई ही पड़ती है जीवनशैली के स्तर पर भी दिखाई पड़ती है। सच कहूं तो सारे देश की विशेषता एक दल्ली में काफी कुछ देखी जा सकती है.लेकिन इसकी गर्मी से तो भगवान् ही बचाए.यहाँ काफ़ी खुलापन दिखायी पड़ता है.देश के मिजाज के साथ दिल्ली भी बदल रही है. |
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सोमवार, 23 जून 2008
उफ़ ये गर्मी (भोपाल से दिल्ली)
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