विचार

मंगलवार, 8 जुलाई 2008

चुनाव और बनती -बिगड़ती दोस्ती.

लोकसभा चुनाव आने वाला है.अब नए रिस्तो के बनने पुराने में खामियों के दिखने और टूटने का समय आ गया है.इसी क्रम में वाम पार्टिया कांग्रेस से बहुत नाराज हो गई है (४ सल् बाद).उसमे अब केवल खामिया इनको दिख रही है.क्योंकि वोट तो चाहिए ही।

वाम पार्टियाँ काग्रेस की असफलता पर एक आरोप पत्र लाना चाहती है .लेकिन यह आज से एक-दो-तीन चार सल् पहले क्यों नही कर सकी.तब तो मंहगाई और अन्य विरोध के लिए एक औपचारिकता की जाती थी.सरकार की बातचीत (पार्टी )के बाद सरकार का कदम ही ठीक.रहता था ?ये भूलते हैं की सरकार केवल इनके समर्थन से चल रही थी.सरकार की चाय पर जनता की तकलीफों को ये कुर्बान कर देते थे।

ये चाय -पानी पार्टियाँ चीन के किसी भी (सिक्किम और अरुणाचल पर उसके रूख )सरकार पर दबाव नही बनाती की सरकार कदा प्रतिरोध करे,बल्कि सरकार पर अप्रत्यक्ष दबाव ही उसके पक्ष में बनाती हैं। आज चुनाव आया है तो इन्हे देश हित और जनता,तथा मंहगाई याद आ रही है सवाल यह है की यह इन्हे पहले क्यों नही याद आया.क्योंकि मंहगाई लगातार बढ़ रही है.और करार पर सरकार लगभग दो साल से काम कर रही है.सरकार ४ साल से इनके समर्थन से चल रही है.

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