विचार

बुधवार, 7 मई 2008

शक्ति और अर्थ की गुत्थी

इस समय पूरे संसार के बुद्धिजीवी स्त्रियों की दशा और दिशा पर चिंतन में उलझे दिखाई देते हैं .इनके द्वारा स्त्रियों की दशा पर चाहे जितना चिंतन और हल्ला किया जा रहा हो,उसका कोई सार्थक हल निकालता नही दिखाई दे रहा है.स्त्री विचारकों में इसके खिलाफ जबरदस्त आक्रोश दिखाई दे रहा है.उनका आक्रोश इस कदर बढ़ रहा है की वो पुरूष नेतृत्व में बनी भाषा को भी बदल देना चाहती हैं.उनका आन्दोलन क्या रंग लाता है,देखने की चीज़ होगी?
आज राज्यसभा में महिला आरक्षण विधेयक पेश किया गया,इससे ही महिला नेत्रियाँ एक दूसरे को बधाईयाँ दे रही हैं.यह खुशी की बात है.लेकिन उन्हें अभी अपने अधिकारों के लिए बड़ी लड़ाई लड़नी है.वैसे छोटी ही सही यह सफलता न्याय की और एक कदम हैऔर खुश होने लायक है।
स्त्री ससक्तिकरण के लिए लोग स्त्रियों को आत्मनिर्भर बनाना चाहते हैं.पर यह ऐसा सम्बन्ध नही है,शक्ति जिसके पास होती है,न्याय और धन भी उसके पास होता है है.जो शारीरिक रूप से शक्तिशाली हो या शक्ति का कोई और साधन जिसके पास हो उसे दरिद्र कम देखा गया होगा.साईकिल के पहिए को आपने घूमता देखा होगा,वह पहिया एक ह्वील जिसे गांव किभाषा में कुत्ता कहते हैं के सहारे घूमता है.लोग सोचते हैं पहिया घूम रहा है,पर वास्तविकता यह है की वह ह्वील हिउस पहिये को घोमाता है.ऐसे ही शक्ति धन को अपने चारों और घुमाती है.लोग अपनी समस्याओं का हल धन में खोजते हैं.जबकि उसका उत्तर शक्ति में छिपा है.प्राचीनकाल से ही जिसने शक्ति हासिल की धन भी उन्हें मिला.जिनके पास शक्ति और धन नही था और उन्होंने बादमें कठोर श्रम द्वारा सहक्ति हासिल की उन्हें राजसत्ता भी मिली है.आज तक पुरूष ने महिला को अधिकार इस लिए नही लौटाये हैं क्योकि विरोध कराने की उसमें ताकत नही है.इस लिए अपने अधिकारों को मांगने से पहले महिलाओं को इन अधिकारों को संभालने और हासिल कर लेने की ताकत पुरुशूं के सामने दिखानी होगी।

एक पुराना श्लोक इसको बताता है -
क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल है
उसको क्या जो विष दंतहीन और सदा सरल है।
इस लिए जरुरी है की महिलाएं अपने आपको पुरुषों के सापेक्ष शारीरिक रूप से मजबूत बनायें.कोइभी निर्णय लेने से पहले दिल के साथ बुद्धि का भी प्रयोग करें.इतिहास गवाह है की किसी को भी उसका अधिकार मांगने से नही मिला है.उसके लिए उसे सघर्ष करना पड़ा है.अधिकार टैब तक नही मिला है जब तक शासक या अपहर्ता के पास कोई भी विकल्प रहा है।
अर्थ और सम्मान टू शक्ति की दासी हैं.शक्ति के पास आते ही ये स्वतः खींची चली आती हैं.

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