कुछ ब्लोगों पर अपनी अभिव्यक्ति के लिए गलियों का इस्तेमाल किया जाता है.यह कहाँ तक उचित है.यह टू अपनी कुंठा को ही प्रकट करना है.क्या शिष्ट जन की भाषा इतनी कमजोर हो गई है की अपने भावनाओं को प्रकट करने के लिए गलियां जरुरी हो गई हैं.किसी की आलोचना करने के लिए निकृष्ट भाषा का प्रयोग कर आलोचक किस शिष्टता और सज्जनता का परिचय देता है।
इस तरह की भाषा के प्रयोग के से मन के गंदे आवेग जो मस्तिष्क में कुलबुलाते रहते हैं बाहर निकल जाते हैं.इससे कुंठाएँ मनोग्रंथियाँ नहीं बन पाती .इससे देश में मनोरोगियों की संख्या नही बढ़ रही.और मनोचिकित्सा पर सरकार कोज्यदा खर्च नही करना पड़ा रहा है.लेकिन मनोचिकित्सक जो बड़ी -बड़ी देग्रीयाँ लिए बैठे हैं वे खुश न होंगे.वे अपने ज्ञान और पैसे को कैसे बाधाएं.
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