विचार

शुक्रवार, 30 मई 2008

दुखी राम के दुःख क गठरी

गर्मी क मौसम रहा ,दुखीराम के अमरैयाँ क सब पेड़ बड़े-बड़े आम के गुच्छा से लड़ा रहे.उ अमरैयाँ से लरिका लोग आम न तोडें एही खातिर घर क सयान दुखीराम के बगीचा में भेजी देहें .लेकिन जैसन दुखी क आदत रहा खटिया पर पड़ती देश दुनिया क फिकिर उनके घेर लिहेस .दुखी सोचई लगे।

नेता लोग कहत्हीं देश में अपराधी एकदम निडर होइगा ह एन काहे की देश क न्याय व्यवस्था इतना धीमा बा की सजा मिलई में अप्राधीन और पीड़ित लोगन क उमिर गुजारी जाथ.एही माँ गरीबन क टी पूरा क पूरा घरे उजर इ जाथ एक त उनके अपराध क दंश भोगे पडत दूसरे कानून व्यवस्था से कस्ट उठाए पडत .लेकिन का एही समस्या क जिम्मेदारी केवल जज लोगन क बा ....

काहे की सभी के पता बा की पहिले थाने में मामला दर्ज कराए पडत फ़िर पुलिस ओकर जांच करत अगर पुलिस ठीक से जांच न करे ,जांच में देरी करे त मामला के निर्णय में त देरी हो इ बे करी...... त का एकर जिम्मेदारी जज साहेब लोगन क बा।

साथ में अगर पुलिस क जांच ग़लत रहै त पीड़ित के न्याय भी न मिले त का एकर जिम्मेदारी जज साहेब लोग न क होई चाहे.और ऐ त सब के पता बा पुलिस क्जांच कई कारण से प्रभावित हो थ । दोसर ऐ कि आज न्यायलय में जज क बहुत पद खाली बा अब काम कर इ वाला लोग इ न रह इ त काम क इ से होई .अब नियुक्ति क काम त सरकार क र थ .फ़िर इ लोग बेचारी न्याय पालिका के काहे बदनाम कर थीं भाई।

एक बात और इ कि इ देश में जे सब से शक्तिशाली बा उ ह नेता लोग काहे कि क़ानून बनावे क काम ता विधायिका बा अ उर ओकर पालन कराव इ क काम कार्यपालिका क बा .अ उर दू न उ जगह नेता नाही टी अधिकारी लोग काम कर थीं । अ उ र नेता अधिकारी में रिश्ता जरूर अ इ रहत और जब रिश्ता बी टी एक दूसरे के ख़िलाफ़ काम कहे क रिहिन .

जब सारी शक्ति इ न ही के पास बा टी बताव एह में जज साहेब लोगन क कवन दोष ....फ़िर इ लोग ओनके दोषी काहे बताव थीं भाई .....जबकि समय-समय पर उनके मिला अधिकार में भी कटौती क बात भी इ लोग कर थीं जहाँ तक विश्वास क बात बा तअन्य संस्थान के तुलना में आज भी न्यायपालिका पर लोगन क अधिक बा।

गरीब होई चाहे आमिर हर तबका ,अपराध छोटा होई या बड़ा न्यायालय मेंजरूर लिआवाई चाह थीं । इ बात लोगन क न्याय्पलिज्का पर विश्वास दिखावता.

जबकि चुनाव के दिन खाली रहे पर भी लोग वोट डाली नाही जातें ,आख़िर काहे ?जवान अधिकार पावे के खातिर इतना कुर्बानी देहे पड़ा बा उही के प्रति इ बेरुखी । के बा एकरे लिए जिम्मेदार?केकरे प्रति लोगन क विश्वास बा केकरे प्रति नाही।इ बात से पता च ल थ विधायिका में लोगन क विश्वास कम समय में ही बहुत घटी गा बा. अभ भी समय बा व्यवस्था में सुधर करी क लोगन क विश्वास बढ़ावा जाई सकत।

इही सोचत-सोचत दुखी क नीद खुलिगा,अ उ र दुखी चिंतित होई गा ऐ न ।

कोई टिप्पणी नहीं: