विचार

शनिवार, 17 मई 2008

बालक का मन

उपहास का डर
मैं जब -तब,
ह्रदय के सागर से ,
भावों के मोती चुनकर
शब्दों की माला में पिरोता

और मन ही मन मुदित होता
जैसे पायी हो कोई निधि

क्या है यह तो नही समझता
लेकिन इस भय से की देख इसे
उपहास करेगा कोई भी
मेरी सृजनात्मकता का
कहाँ -कहाँ नही छिपाता फिरता ।

1 टिप्पणी:

shivam ने कहा…

abhivyakti se daro mat.
dikhane ka jamana hai.......dikhate fira karo.

http://www.grooghantaal.blogspot.com/