विचार

रविवार, 13 जनवरी 2019

प्रयाग में माघ महीने में गंगा किनारे रहकर इन्द्रियों को वश में कर स्नान - ध्यान कर ईश्वर की आराधना करना ही कल्पवास है

संयम का अभ्यास और पवित्रता को पाने की कोशिश कल्पवास की बुनियादी शर्त है। यह पौष माह के ११ वें दिन से माघ माह के १२ वें दिन तक लगता है। धैर्य और भक्ति के लिए जाना जाता है। इस अवधि में एक दिन में एक बार ही भोजन किया जाता है।

   भारत  कोष के मुताबिक हजारों साल पहले जब प्रयाग शहर बसा भी नहीं था गंगा और यमुना के किनारे आसपास जंगल था। यहां ऋषि मुनि तपस्या करते थे उन्होंने गृहस्थों के लिए कल्पवास का विधान रखा। इस दौरान यहां आने वालों को शिक्षा दीक्षा दी जाती थी। इस दौरान उन्हें पर्णं कुटी में रहना पड़ता था। अब पत्ते की कुटी की जगह तंबुओं ने के ली है। कल्पवास के दौरान गृहस्थों के तीन कार्य होते थे। तप, होम और दान। कल्पवासियों की दिनचर्या सुबह गंगा-स्नान से शुरू होती है और डर रात तक भजन प्रवचन आदि जैसे कार्यों के साथ समाप्त होती है।http://m.bharatdiscovery.org/indiahttps://brahmaastra.https://kumbh.gov.in/hi/attractionsblogspot.com/2019/01/blog-post.html?m=1https://brahmaastra.blogspot.com/2018/12/blog-post_26.html?m=1https://brahmaastra.blogspot.com/2019/01/blog-post_6.html?m=1



पद्म पुराण में कल्पवास को इस तरह परिभाषित किया गया है।


प्रयागे माघ पर्यन्त त्रिवेणी संगमे शुभे। निवासः पुण्यशीलानां कल्पवासो हि कश्यते॥

पुराण के मुताबिक  तीर्थराज प्रयाग के त्रिवेणी संगम पर माघ मासभर निवास करने से (साधना कर कल्पवास करने)पुण्य फल प्राप्त होता है। संगम तट पर कल्पवास करने के संदर्भ में माना गया है कि कल्पवासी को इच्छित फल तो मिलता ही है, उसे जन्म जन्मांतर के बंधनों से मुक्ति मिल जाती है।

महाभारत में कहा गया है कि एक सौ साल तक बिना अन्न ग्रहण किए तपस्या करने का जो फल मिलता है, माघ मास में कल्पवास करने भर से प्राप्त हो जाता है। जगह जगह यह वर्णन मिलता है कि भगवान शिव ने त्रिपुर राक्षस के वध की क्षमता कल्पवास से ही प्राप्त की थी। ब्रह्मा के मानस पुत्र सनकादि ऋषियों को कल्पवास करने से आत्मदर्शन का लाभ हुआ।


 कल्पवास की अवधि : कल्पवास की न्यूनतम अवधि एक रात्रि की है। बहुत से श्रद्धालु जीवनभर माघ मास गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम को समर्पित कर देते हैं। विधान के अनुसार एक रात्रि, तीन रात्रि, तीन महीना, छह महीना, छह वर्ष, 12 वर्ष या जीवनभर कल्पवास किया जा सकता है।  इसकी महत्ता को देखते हुए  पुराणों में तो यहां तक कहा गया है कि इसी कारण आकाश तथा स्वर्ग में जो देवता हैं, वे भूमि पर जन्म लेने की इच्छा रखते हैं। वे चाहते हैं कि दुर्लभ मनुष्य का जन्म पाकर प्रयाग क्षेत्र में कल्पवास करें।


 महाभारत के एक प्रसंग में मार्कंडेय धर्मराज युधिष्ठिर से कहते हैं कि राजन्‌! प्रयाग तीर्थ सब पापों को नाश करने वाला है। जो भी व्यक्ति प्रयाग में एक महीना इंद्रियों को वश में करके स्नान- ध्यान और कल्पवास करता है, उसके लिए स्वर्ग का स्थान सुरक्षित हो जाता है।


 कल्पवास का विधान : प्रयाग क्षेत्र में निवास से पहले दिन में एक बार भोजन का अभ्यास कर लेना चाहिए। प्रयाग के लिए चलने से पहले गणेश पूजा अनिवार्य है। मार्ग में भी व्यसनों से बचे रहें। त्रिवेणी तट पर पहुंच कर यह संकल्प लें कि कल्पवास की अवधि में बुरी संगत और गलत वााणी निकालने की बुराई का  त्याग करेंगे, यहां कहा जाता है कि महीनेभर संयम का पालन करने से व्यक्ति की इच्छाशक्ति दृढ़ होती है और वह आगे का जीवन सदाचार से व्यतीत करता है।


 कल्पवासी को चाहिए कि निम्नलिखित मंत्र पढ़कर अपने ऊपर गंगा जल छिड़के।


 मंत्र : ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपि वा। यः स्मरेत पुण्डरीकांक्ष से बाह्याभ्यंतरः शुचि । इस मंत्र से आचमन करें- ॐ केशवाय नमः ॐ माधवाय नमः ॐ नाराणाय नमः का जाप करें ।


 हाथ में नारियल, पुष्प व द्रव्य लेकर यह मंत्र पढ़ें। इसके बाद आचमन करते हुए गणेश, गंगा, यमुना, सरस्वती, त्रिवेणी, माधव, वेणीमाधव और अक्षयवट की स्तुति करें।

कोई टिप्पणी नहीं: