विचार

शनिवार, 19 जनवरी 2019

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कितने हिंदू


देश में इन दिनों चुनाव नहीं हो रहे हैं इसलिए धर्म का कहीं शोर भी नहीं है। पर जल्द ही यह स्थिति बदलने वाली है देश का आम चुनाव नजदीक है और संभवतः मार्च में अधिसूचना भी जारी हो जाय। इससे पहले धुरंधर अपने किले दुरुस्त कर रहे हैं। अफ़सोस है कि चुनाव किस लिए होना है और चर्चा क्या होगी पर जब ये अभियान पर धर्म की राग पर भी तराने गाएंगे,ऐसे में हम आप बच नहीं सकेंगे,इसलिए पहले से ही धोखाधड़ी परखने के लिए तैयार हो जाइए।यह इसलिए कि परीक्षक आप ही हैं। ऐसा नहीं धर्म की बांसुरी केवल स्वनाम धन्य लोग ही बजायेंगे वो भी तान छेड़ेंगे, जिसे पता भी नहीं है। कुछ लोग ऐसा भी कहेंगे कि हम तो धर्म निरपेक्ष हैं और आंख दबाते हुए किसी एक तरफ की मान्यता वालों की तरफ होने का संदेश भी दे रहे होंगे। सबसे ग़हरी लड़ाई देश के बहुसंख्यक के लिए होना है क्योंकि चुनावी राजनीति में वोट मायने रखता है , और ऐसे में बहुसंख्यकों का बड़ा हिस्सा पाने के लिए ठगी के हर दांव आज़माए जाएंगे।पहले जाति का दाना डाला जाएगा फिर सैद्धान्तिक समेत कई टुकड़े किये जाएंगे। फिलहाल इस सीन के लिए कुछ समय इन तज़ार करिये। हालांकि मेरा खुद का मानना है कि किसी धर्म को मानना न मानना न मानना व्यक्तिगत मामला है और सभी धर्मों का सम्मान किया जाना चाहिए इसीलिये हिंदू धर्म मे इतने उपवर्ग को मान्यता मिली। धर्म व्यक्ति के आध्यात्मिक उत्थान के लिए है, इसलिए इसे जबरिया नहीं थोपा जा सकता। इसीलिए दुनिया के सम्भवत: एक मात्र धर्मावलंबियों हिन्दू ने इसके प्रचार के लिए अभियान नहीं चलाया, जो स्वयं प्रकाश है वो तो खुद ही दिखेगा उसका प्रचार कैसा। तमाम लोग इसे सनातन धर्म भी कहते हैं कुछ राजनीतिक (अभी कुछ दिनों पहले हुए विधानसभा चुनाव के बाद सरकार बनाने के बाद आज तक टीवी चैनल पर उसी दल के बड़े नेता ने यही बात कही)लोगों को धोखा देने के लिए दोनों को अलग बताते हैं उनको या तो पता नहीं या कम जानकार लोगों को वोट के लिए गुमराह कर रहे हैं ताकि यह वर्ग टुकड़ो में बंटा रहे। उनको पता नहीं कोई भी हिन्दू जब मांगलिक कार्यक्रम करता है तो आरती के बाद कुछ कामनाएं करता है जो इसतरह हैं प्राणियों में सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो सनातन धर्म की जय हो। हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि धार्यते इति धर्म: जो धारण करने योग्य है वही धर्म है मतलब साफ है इसके बुनियाद में नैतिकता और इंसान महत्वपूर्ण है और खुद के साक्षात्कार की ओर इशारा है मतलब यह व्यैक्तिक है पर अगर किसी मकसद से सार्वजनिक रूप से इसकी चर्चा की जाय तो यह व्यक्तिक नहीं रह जाता और यह व्यापार हो जाता है और नीयत में खोट का इशारा करता है। इसलिये चर्चा भी की जानी चाहिए खासतौर से जो खुद को धर्मनिरपेक्ष होने का दावा करते हैं उनके लिए तो अशोभनीय हैं। पिछले दिनों गुजरात से लेकर मध्य प्रदेश विधानसभाओं के लिए चुनाव हुए। इस दौरान कांग्रेस अध्यक्ष तमाम मंदिर जाते हुए दिखाए गए। इसमें कोई बुराई नहीं है हिन्दू मजार, चर्च, दरगाह सब जगह जाते हैं। कांग्रेस पार्टी की ओर से उनको शिव भक्त प्रचारित किया गया, इसके पोस्टर लगे, उनका गोत्र बताया गया। पर सवाल यह है कि आखिर कांग्रेस पार्टी की लोक सभा चुनाव में शिकस्त के बाद पार्टी की एंटनी कमेटी की सिफारिश के बाद ही यह व्यवहार क्यों किया जा रहा है साफ है कि यह व्यापार महज वोट के लिए और बहुसंख्यक समुदाय को ठगने के लिए दिखावा भर है। कांग्रेस अध्यक्ष 45 साल से अधिक उम्र के होंगे पर शिवभक्ति उनको पिछले कुछ चुनाव से चुनाव तक ही याद आई है। इससे पहले के उनके ऐसे फ़ोटो कांग्रेस पार्टी के पास भी शायद ही हों, साफ है कि धोखाधडी का उपक्रम भर है। अब चलते हैं धर्म के निर्धारण के लिए, चूंकि धरती पर आने वाला कोई भी बच्चा खुद धर्म का निर्धारण नहीं कर सकता। इसलिए इसके लिए उसे दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिए और न ही उसके अवसर काम किये जाने चाहिए। भारत का संविधान भी इसी का हिमायती है। कांग्रेस अध्यक्ष के लिए भी यह सत्य है , एक राजनीतिक दल के अध्यक्ष और देशवासी होने के नाते देश के सबसे ताकतवर पद को पाने की लालसा बुरी नहीं है पर उन्हें भी चाहिए कि इस पद को देने की अधिकारी जनता को स्वार्थ के लिए अंधेरे में न रखें। अब आते हैं कि दुनिया भर में किसी बच्चे के धर्म निर्धारण की पद्धतियों के बारे में। दुनिया भर में दो तरह के समाज हैं मातृ सत्तात्मक (जिसमें बच्चे और अगली पीढ़ी के सभी विषयों का निर्धारण माता के अनुसार हो) और पितृ सत्तात्मक(जिसमें बच्चे और अगली पीढ़ी के सभी विषयों का निर्धारण पिता के अनुसार हो)। भारत में कुछ जनजातियों को छोड़ दिया जाय तो बाकी समाज पितृ सत्तात्मक समाज का हिस्सा है और पीढ़ी दर पीढ़ी यह व्यवस्था दूसरे को हस्तांतरित होती है। मा न लिया जाय एक ही जाति की दो उपजातियों और गोत्र के स्त्री पुरूष का विवाह होता है तो बच्चे का गोत्र और जाति पिता की होगी क्योंकि यह पितृ सत्तात्मक व्यवस्था का हिस्सा है। इस तरह राहुल गांधी का मिलान करें तो पिता राजीव गांधी जिन्हें जाति और गोत्र अपने पिता फिरोज गांधी से मिलेगा जो पारसी थे(पारसी समाज में क्या व्यवस्था है मुझे नहीं पता।)। इसके बाद राहुल को भी उसी का हिस्सा होना चाहिए। फ़िरोजगान्धी देश के महान सपूत थे, उनके धर्म के बारे में पिछले साल कई वेबसाइट ने आलेख भी लिखे थे। विकीपीडिया पर भी मौजूद है मैंने कई जगह पढ़ा है इन सब को लेकर एक गांधी जिसे भुला दिया गया पोस्ट मैंने पहले ही लिखा था। और राहुल मातृ सत्तात्मक व्यवस्था में विश्वास रखते हैं तो उन्हें धर्म और बाकी चीजें सोनिया गांधी जी से विरासत में मिलेंगी क्योंकि वो सोनिया ji उनकी माँ हैं। काफी कुछ इंटरनेट पर खंगालने पर भी सोनिया जी के धर्म के बारे में कुछ स्पष्ट नहीं हो सका, विकिपीडिया पर भी इस बारे में नहीं मिला पर सोनिया जी इटली की रहने वाली हैं वहां बहुसंख्यक रोमन कैथोलिक ईसाई हैं। Wikipedia के मुताबिक सोनिया जी का जन्म तो रोमन कैथोलिक परिवार में ही हुआ था। एक अन्य वेबसाइट पर उन्हें रोमन कैथोलिक बताया गया है, हालांकि bbc के एक आलेख के मुताबिक कुछ साल पहले कैथोलिक की एसोसिएसन ने खारिज भी कर दिया है कि सोनिया कैथोलिक हैं। वहीं सोनिया हिंदू मंदिर और संतों के यहां भी जाती रही हैं और सार्वजनिक तौर पर हिंदू प्रथाओं का पालन करती रही हैं पर हिंदू हैं या नहीं इस पर आज तक कुछ नहीं कहा और न ही ईसाई हैं या नहीं इस पर कुछ कहा। हालांकि उनके सरकारी दस्तावेज से पता चल सकता है पर किसी के लिए उसको पाना आसान नहीं है। और हिंदू मंदिर और संतों के यहां आना जाना राजनीतिक स्टंट हो यह खारिज नहीं किया जा सकता क्योंकि देश की बड़ी आबादी हिंदू धर्मावलंबी है और उस पोका समर्थन पाने के लिए गलत होते हुए भी एक हटकंडा तो है सत्ता के लिए। और सिर्फ सत्ता के लिए ऐसा किया जा रहा है तो यह धोखाधड़ी का रिश्ता है, जिस रिश्ते की बुनियाद में ही धोखाधड़ी है कितना लंबा चलेगा। और यदि दूसरे धर्म से संबंधित व्यक्ति सिर्फ इसलिए दूसरा धर्म अपना रहा है कि उसके धर्म के लोगों की संख्या कम है और सत्ता पाने में कम सहायक हैं तो वह दूसरे का भी नहीं होगा। प्रधानमंत्री बनने का सपना देखना बुरा नहीं है और। नधर्म के नाम पर रोक है और न होना चाहिए पर संबंधित व्यक्ति को ऐसी कार्य योजना सामने रखनी चाहिए जिससे सभी का समर्थन जुटाया जा सके चाहे वह किसी धर्म का हो। राजनीति का धर्म होना चाहिए(मतलब एक सिद्धांत जिस पर लोगों का समर्थन जुटाया जा सके धर्म का रंग डाले बगैर, लोगों का कल्याण मकसद हो, नैतिकता हो) धर्म की राजनीति नहीं होनी चाहिए(धर्म के नाम पर लोगों को लड़कर धर्म के नाम पर एन केन प्रकरेन सत्ता पाना)। भारत में उसकी कोई जरूरत नहीं नेहरूजी धर्म के कारण प्रधानमंत्री नहीं बनाए गए, शास्त्री जी, इंदिरा जी और मनमोहन सिंह जी से उनका धर्म तो कोई नहीं पूछता। तो अब क्यों जहर घोल रहे हो, देश के बहुत से राष्ट्रपति और मुख्य न्यायाधीश मुस्लिम धर्म के रहे हैं और लोगों ने स्वीकार किया है और प्यार लुटाया है। यदि सत्ता के लिए दूसरे धर्म का होने का दिखावा कर रहे हैं तो यह ही साम्प्रदायिकता है। यह गांधी जी का भी अपमान है, जिस धर्म में पैदा हुए हो उसका भी अपमान है। क्योंकि उन्ही के नाम पर गांधी परिवार को लोगों का बड़ा समर्थन अब तक मिला है। तमाम खामियों के बाद भी उन्होंने तो अपना धर्म बदलने की बात कभी नहीं कही। अगर सभी धर्म को समान मानते हो तो अपने धर्म पर भी गर्व करने की जरूरत है, सुविधा के मुताबिक चीजें अपनाना राजनीतिक ठगी है। अभी सोशल मीडिया में एक वीडियो खूब वायरल हो रहा था जिसमें राहुल की ओर से भारतीय संस्कृति में अहिंसा का आना इस्लाम से बताया कहा जा रहा था, लल्लन टॉप वेबसाइट ने इसकी पड़ताल की तो फेक पाया इसमें उन्होंने, इस्लाम ईसाई आदि का उल्लेख करते हुए सभी धर्मो से आने की बात कही। हालांकि शिवभक्त हिंदू धर्म का उल्लेख करना भूल गए। अभी काफी ट्रेंनिग की जरूरत है।

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