ब्रह्मास्त्र देश दुनिया के घटनाक्रम, भारत की राजनीति, भारत की संस्कृति और सभ्यता, समाज की वर्तमान स्थिति पर अभिव्यक्ति का माध्यम है.
विचार
शुक्रवार, 5 अगस्त 2011
तो क्या लब आजाद होते
मजबूत लोकपाल की मांग को लेकर देश दो फाड़ में बंटता जा रहा है। एक पक्ष अपने लिए देश की संसद से कुछ मांग रहा है तो दूसरा पक्ष इससे अपने 'अहम्Ó से जोड़ कर देख रहा है। गुरुवार को समाजसेवी अन्ना हजारे और उनके साथियों ने लोकसभा में प्रस्तुत कठपुतली और बूढ़े लोकपाल विधेयक को प्रस्तुत करने के विरोध में मसौदे की प्रतियां जलाईं। अब तथाकथित जनप्रतिनिधि इसे संसद का अपमान बता रहे हैं। आजादी से पहले ऐसे ही अंग्रेज भी किसी भी विरोध प्रदर्शन पर ब्रिटेन की संसद और कानून का अपमान बताकर जनप्रतिनिधियों को जेल में डाल देते थे और यातना देते थे। इसके बावजूद जनता और जनप्रतिनिधियों ने संघर्ष का रास्ता चुना और अपने मन और विवेक की बात मानी, जिसका नतीजा निकला, कम से कम हम कहने को तो आजाद हो गए। ऐसे ही अंग्रेजों द्वारा बनाया एक कानून (नमक) को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने १९३० में तोड़ा था। यही नहीं राष्ट्रपिता द्वारा चलाए गए सारे आंदोलन किसी न किसी नीति या कानून के विरोध में ही थे, ऐसे में हम यदि उन गलत कानूनों का मानकर हक के लिए न लड़ते तो शायद ये लब भी आजाद न होते। सविनय अवज्ञा आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन, असहयोग आंदोलन आखिर किसकी रक्षा के लिए हुए, जो आज लोगों को अपनी बात रखने पर संसद का अपमान होने लगा और फिर तथाकथित जनप्रतिनिधि जन की भावना समझते तो क्या आज मसौदे की प्रति जलाने की नौबत आती, जबकि चर्चा का नाटक महीनों चला।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें