विचार

गुरुवार, 30 जून 2011

भारत में नया दर्शन 'दुर्भाग्य जरूरी

किसी भी देश के समाज में शुभ-अशुभ का दर्शन सभ्यता के विकास के साथ ही फल-फूल जाता है। भारत इसका अपवाद नहीं है। जिस तरह समाज में अशुभ और दुर्भाग्य का दर्शन विकसित होता है, इसे टालने के प्रयत्न भी किए जाते हैं। लेकिन भारत का समाज ही शायद इतना भ्रष्ट है कि यहां के प्रधानमंत्री 'दुर्भाग्यÓ पूर्ण कार्रवाई को जरूरी बताते हंै। इससे बड़ा दुर्भाग्य ढूढऩा शायद मुश्किल हो। वह भी उस कार्रवाई का बचाव करने की कोशिश की जा रही है, और उस जनता को धमकी दी जा रही है, जिसे कोई कानून और किसी देश का समाज शक्ति ग्रहण करता है। संविधान की प्रस्तावना के अनुसार जिस संविधान की रक्षा के नाम पर भ्रष्टाचार का विरोध करने वालों को सरकार सता रही है, वह संविधान किसी संसद को, किसी न्यायपालिका को नहीं बल्कि 'आत्मार्पितÓ किया गया है। मतलब संसद और अन्य मशीनरी लोगों के लिए स्थापित हैं। कायरतापूर्ण बर्बर कार्रवाई का बचाव करने से पता चलता है भारत सरकार के प्रमुखों में सीधे ईमानदार भले ही कोई दिखें, उनके पाक साफ होने पर संदेह खत्म नहीं होता।

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